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गंगा तो पवित्र है
इन्सानों के दुष्कर्म
अनवरत बहाना इसका चरित्र है
मैली पड़ जाती है
फिर भी बहती जाती है
आखिर माँ है
चुप चाप सहती जाती है
मगर दूषित करने वाले
माँ पुकार कर भी
ज़हर पिलाते जाते हैं
दुखों का अम्बार जुटाते जाते हैं
कहाँ किसी को ये प्यार दे पाते हैं
स्वार्थ ही तो कर्म है इनका
बस यही धर्म निभाते जाते हैं
इक दिन ये राख़ बन जाएंगे
माँ से मिलने फिर वापस आएंगे
किस मुहं से मुक्ति मांग पाएंगे
मगर गंगा तो आखिर गंगा माँ है
मना भी तो ना कर पायेगी
माँ क्या होती है
जो जीते जी ना समझ सके
अब राख़ बन क्या ख़ाक समझ पाएंगे !!

*****************************************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Tanuja Upreti on August 7, 2015 at 12:33pm

एक ज्वलंत मुद्दे पर अच्छी प्रस्तुति I बधाई मोहन जी 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 7, 2015 at 12:30pm

आदरणीय JAWAHAR LAL SINGH जी हार्दिक आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 7, 2015 at 12:29pm

आदरणीया kanta roy जी प्रोत्साहन के लिए तहे दिल से आभार....सादर 

Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 11:34pm
गंगा तो पवित्र है ... क्या खूब अभिव्यक्ति हुई है । बहुत सुंदर रचना आदरणीय मोहन सेठी इंतजार जी
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 5, 2015 at 8:18pm

बहुत ही सुन्दर भावनात्मक और व्यावहारिक पक्ष रक्खा है आपने, बधाई!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 5, 2015 at 6:40pm

आदरणीय कृष्णा जी आपकी सकारात्मक टिप्पणी पाकर हृदय प्रसन्न हुआ ...बहुत बहुत आभार आपका ...सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 4, 2015 at 8:22pm

वाह आ० इन्तजार सर! आपकी कविताओं के भाव सदैव से निराला रहा है! और उसमें सार्थक विषयों ने एक नई चेतना जगा दी है! बहुत ही बेहतरीन सर! हार्दिक बधाई!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 4:55pm

आदरणीय Neeraj Kumar 'Neer' जी आपका हार्दिक आभार एवं मंगलकामनाएँ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 4:53pm

आदरणीय Sulabh Agnihotri जी हार्दिक आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 4:52pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी सकारात्मक टिप्पणी पाकर दिल ख़ुश हुआ ...बहुत बहुत धन्यवाद ...सादर 

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