For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शायरी का हुनर नहीं आता -- (मिथिलेश वामनकर)

212—212—1222

 

पास दिल के जो डर नहीं आता

राहे-हक हमसफर नहीं आता

 

आज बेटा बदल गया कितना

एक आवाज़ पर नहीं आता

 

मान लेता अगर कहा मेरा

लौटकर तर-ब-तर नहीं आता

 

बारहा तेरे दर पे आता हूँ 

तू कभी मेरे घर नहीं आता 

 

गाँव से शह्र लोग आते हैं

किन्तु बूढ़ा शजर नहीं आता 

 

घूरता हूँ मैं आसमां, जब तक

मेरे दिल में उतर नहीं आता

 

मेरी औकात जो बताता है

आइना देख कर नहीं आता

 

हौसला हाथ बस हिलाता है

पास मेरे मगर नहीं आता

 

रात दिल में उतर गई ऐसे

दिन निकलता नज़र नहीं आता

 

जिंदगी आज बुझ गई होती

चाँद गर बाम पर नहीं आता

 

दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन

कोई भी पूछकर नहीं आता

 

आँख बादल हुई तो दिल का ये 

मोर क्यों रक्स पर नहीं आता

 

-----------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 1513

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2015 at 1:39am

मान लेता अगर कहा मेरा / लौटकर तर-ब-तर नहीं आता ...  इस शेर ने चौंकाया है, मिथिलेश भाई.

आज सायं मैं इलाहाबाद के अग्रगण्य बुज़ुर्ग़ शाइर श्री बुद्धिसेन शर्माजी के निवास पर गया था. देर तक बातें होती रहीं. मुझे कल की ही उनकी लिखी एक ग़ज़ल का प्रथम श्रोता होने का सौभाग्य मिला. उसी दौरान शेर दर शेर बातें चलती रहीं. उन्होंने एकबात बड़े मार्के की कही - क़ामयाब ग़ज़ल के शेर ऐसे होने चाहिये कि १७ साल के युवक सुनें या सत्तर साल के अनुभवी बुज़ुर्ग़, सभी उन शेरों से अपनी-अपनी समझ के अनुसार कुछ न कुछ सार्थक पा लें. जहाँ एक युवा उन शेरों में अपने अनुसार का ’रूमानी संसार’ पाता है तो वहीं बुज़ुर्ग़वार अपनी सोच से ’आध्यात्म-व्यवहार’ पा जाता है. इसकारण, शेर इशारों में बातें करें और लाक्षणिकता ग़ज़ल का आधार हुआ करे.

उपर्युक्त शेर में लाक्षणिकता सम्मोहित करती है. इतनी मुखर, किन्तु उतनी ही तिर्यक !

गाँव से शह्र लोग आते हैं

किन्तु बूढा शज़र नहीं आता ..  वो बूढ़ा शजर क्या नहीं कह जाता ? सानी ने बहुत कुछ कह दिया भाई !  बहुत खूब ! 

सही है, गाँव से बाहर जाने के क्रम में बूढे शजर का मौन स्थिर बने रहना उसकी चीख से अधिक वाचाल है. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 12:59am

मान लेता अगर कहा मेरा

लौटकर तर-ब-तर नहीं आता........... हा हा हा ....नमन...... इस शेर में जो 'अनकहा' छोड़ा था वही जान था लेकिन अस्पष्ट वाली टीप से .... बस मेरा प्रिय था मगर ..... आजकल अशआर से ज्यादा सम्मोहन नहीं पालता..... आपने इस शेर को पुनः सम्मिलित कर मुझे बहुत मान दिया है.  मेरी सोच का गहराई से अनुमोदन हुआ है. 

गाँव से शह्र लोग आते हैं

किन्तु बूढा शज़र नहीं आता / चुप खड़ा वो शजर नहीं आता


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2015 at 12:38am

जय हो..  :-))

पास दिल के जो डर नहीं आता

राहे-हक हमसफर नहीं आता

 

आज बेटा बदल गया कितना

एक आवाज़ पर नहीं आता

 

मान लेता अगर कहा मेरा

लौटकर तर-ब-तर नहीं आता

 

बारहा तेरे दर पे आता हूँ  

तू कभी मेरे घर नहीं आता  

 

गाँव से शह्र लोग आते हैं

वो गली का शज़र नहीं आता .. ..

क्या कहूँ वो शजर नहीं आता / क्यों भला वो शजर नहीं आता / चुप खड़ा वो शजर नहीं आता / या ऐसा कुछ ?..  

 

 

 

घूरता हूँ मैं आसमां, जब तक

मेरे दिल में उतर नहीं आता

 

मेरी औकात जो बताता है

आइना देख कर नहीं आता

 

हौसला हाथ बस हिलाता है

पास मेरे मगर नहीं आता

 

रात दिल में उतर गई ऐसे

दिन निकलता नज़र नहीं आता

 

 

जिंदगी आज बुझ गई होती

चाँद गर बाम पर नहीं आता

 

दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन

कोई भी पूछकर नहीं आता

 

 

आँख बादल हुई तो दिल का ये  

मोर क्यों रक्स पर नहीं आता

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 12:29am

आदरणीय सौरभ सर मुझे लगा कि आपका इशारा इन्ही अशआर पर है... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 12:28am

पास दिल के जो डर नहीं आता

राहे-हक हमसफर नहीं आता

 

जिंदगी भर बबूल बोये हैं

आम का यूँ समर नहीं आता

 

आज बेटा बदल गया कितना

एक आवाज़ पर नहीं आता

 

मान लेता अगर कहा मेरा

लौटकर तर-ब-तर नहीं आता

 

बारहा तेरे दर पे आता हूँ  

तू कभी मेरे घर नहीं आता  

 

गाँव से शह्र लोग आते हैं

वो गली का शज़र नहीं आता

 

यार है खैर-ख्वाह भी लेकिन

मेरे हक में नजर नहीं आता

 

घूरता हूँ मैं आसमां, जब तक

मेरे दिल में उतर नहीं आता

 

मेरी औकात जो बताता है

आइना देख कर नहीं आता

 

हौसला हाथ बस हिलाता है

पास मेरे मगर नहीं आता

 

रात दिल में उतर गई ऐसे

दिन निकलता नज़र नहीं आता

 

बस खयाली लुगत लगाने से

शायरी में असर नहीं आता

 

जिंदगी आज बुझ गई होती

चाँद गर बाम पर नहीं आता

 

दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन

कोई भी पूछकर नहीं आता

 

रास्ता इश्क का, सफ़र मुश्किल

एक भी राहबर नहीं आता

 

आँख बादल हुई तो दिल का ये  

मोर क्यों रक्स पर नहीं आता

 

खुद को शायर तो खूब कहता, पर 

शायरी का हुनर नहीं आता

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2015 at 12:24am

आप कैसे पहचानेंगे दोनो तरह के शेरों को ? .. :-))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 12:21am

आदरणीय सौरभ सर, ग़ज़ल की सराहना, मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. आपने सही कहा अशआर की संख्या अधिक हुई है और कुछ बस हुए भर है. उन्हें ग़ज़ल से हटाना उचित होगा. मार्गदर्शन के लिए आपका आभार... नमन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 12:17am

आदरणीय कृष्ण भाईजी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 12:17am

आदरणीय नीरज नीर जी, ग़ज़ल की सराहना, सकारात्मक और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2015 at 11:53pm

आदरणीय मिथिलेशजी, इस उम्दा ग़ज़ल केलिए हार्दिक बधाइयाँ. शेरों की संख्या इस बार अधिक हो गयी है क्या ? गिना नहीं है हमने. गज़ल के कुछ शेर तो बहुत अच्छे हुए है. लेकिन कुछ बस हुए भर हैं. जो बस हुए भर हैं, वे बहुत अच्छे शेरों के साथ चहलकदमी करते नज़र आ रहे हैं. सो उन अच्छे शेरों की नक्शेबाज़ी बन नहीं पा रही है.. :-))

हार्दिक शुभकामनाएँ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
50 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
19 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service