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सूर्य नमस्कार (लघुकथा)

पांच दिनों की लगातार बारिश के बाद कल शाम से आसमान साफ़ है और आज सुबह से सूरज खिला है 

जॉगर्स पार्क में आज रौनक है I पार्क का योगा हॉल ' हा हा  हो हो ' से गूँज रहा है , एक तरफ खुल कर हंसने की  और दूसरी तरफ सूर्य नमस्कार की कवायद  जारी हैI

बुधवा ने अपनी झुग्गी से बाहर निकल कर आसमान की तरफ देखाऔर चिल्लाया 

"अरे अम्मा i  सूरज देवता आय गए हैं , परेसान मत हो  , आज तो दिहाड़ी मिल ही जाएगी , रासन भी ले आऊँगा और तेरी दवाई भी "

उसका मन किया झुग्गी  के बाहर भरे पानी में खूब उछले और जोर जोर से हँसे I उसने चमकते सूरज को देखा और कृतज्ञता से नमस्कार किया I

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by pratibha pande on August 1, 2015 at 6:14pm

Budhvaa aur joggers park ek doosre  se  physically nahin jude hain par  symbolically jude hain.   teen cheezon se ,suraj , namaskar aur hansi .   Budhva ki hansi aur namaskaar  ka  origin  antas se upji  khushi aur  suraj ke prati kritagyata   hai  vahin  doosri  taraf joggers park me ye sab ek exercise ke roop me ho rahaa hai .  sampann logon ke liye  paanch din ki baarish sirf unke routine ko thoda sa hilati    hain vahin Budhvaa  jaise  dihadi  mazdoor  ke  yahan  baarish se fanko  ki  naubat  aa  jati  hai . shayad katha  apna marm  poori tarah se preshit nahin  kar  pai . Aap  katha par  aaye  aapka  hriday  se aabhar ,respected Mithilesh ji


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Comment by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 4:05pm

आदरणीया प्रतिभा जी बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई.

लघुकथा के दोनों दृश्य अलग-अलग है एक पार्क और दूसरा झुग्गी........दृश्यों को  "शोर सुनकर बुधवा  अपनी झुग्गी से बाहर निकला" या ऐसा ही कुछ कर जोड़ा जा सकता है. सादर 

Comment by pratibha pande on August 1, 2015 at 10:05am

aap ek shabd par gaur farmayen. 'kavaayad'  sampann varg ke liye  khul kar hansna aur sury namaskar sahaj nahin hai ,sirf ek exercies hai  vahin sury ko dekhakar budhvaa  ke antas se khushi ki hansi footi aur sury ke prati man 

se kritagyata  jaagi kyonki    lagataar baarish se naa use dihadi mili na uske ghar choolha jala . dono jagah hansi aur namaskaar hai par paristhitiyon me jameen aasman ka antar hai    katha par aane ke liye aapka aabhar. prashant ji   

Comment by Prashant Priyadarshi on August 1, 2015 at 3:04am

आ. प्रतिभा जी, जहाँ तक मेरी समझ है, सामाजिक विषमता पर कुठाराघात आपकी कहानी में परिलक्षित है, और अपने उद्देश्य में सफल रही है आपकी यह कथा. प्रस्तुति के लिए हार्दिक साधुवाद!!

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