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दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ /कान्ता राॅय

धूमिल होती भ्रांति सारी, गण-गणित मैं तोड़ रही हूँ
कलम डुबो कर नव दवात में, रूख समय का मोड़ रही हूँ
                          मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......

नई भोर की चादर फैली, जन-जीवन झकझोर रही हूँ
धधक रही संग्राम की ज्वाला, सागर सी हिल-होर रही हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......

टूटे हृदय के कण-कण सारे, चुन-चुन सारे जोड़ रही हूँ
उद्वेलित मन अब सम्भारी, विषय-जगत अब छोड़ रही हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .....

मृदंग- मृदंग सा है मन मेरा, हरकाती सी शोर रही हूँ
क्षितिज रखी है मैने अंगुली, प्रत्यक्षित हिलकोर रहीं हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .........

रोक सको दम गर है तुममें, प्रलय-प्रकाश जोड़ रहीं हूँ
आत्म स्वरों को रौंदने वालें नर - नारायण तोड़ रहीं हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ........

शक्ति प्रकृति ढोना होगा, मन मृगछाल ओढ रही हूँ
पग-पग रक्तबीज राजे है, अस्त्र अक्षर बल जोर रही हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .........

सिंहासन डोले मनु रक्षक का, ठीकर सारे फोड़ रही हूँ
कोंपलें नई फूट रही है, निर्माण सेतु जोड़ रही हूँ
                          मैं दुर्गेश्वरी मै बोल रही हूँ .......
 


कान्ता राॅय
भोपाल

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 10:33pm

तहे दिल से आभार आपको आदरणीय सलीम शेख जी रचना को पसंद करने हेतु

Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 10:31pm

ह्रदय ताल से आभार आपको आदरणीया मंजू डोंगरे जी .रचना पर आपकी उपस्थिति दिल को भा गयी I

Comment by saalim sheikh on July 29, 2015 at 7:25pm

सिंहासन डोले मनु रक्षक का
ठीकर सारे फोड़ रही हूँ

कोंपलें नई फूट रही है
निर्माण सेतु जोड़ रही हूँ

वाह!!! बेहद उम्दा कलाम !! दिली मुबारकबाद  मोहतरमा kanta roy जी !

Comment by Manju Dongre on July 28, 2015 at 3:04pm

बहुत खूब कांता जी , बहुत सुन्दर रचना   है । 

Comment by kanta roy on July 28, 2015 at 7:49am
हा हा हा हा ....... आभार आपको कि पहली बार पढी है आप हमें , तभी तो फैन वाली बात की है । पहले से पढ ली होती तो इतना असर नहीं होता । )))))
Comment by Rita Gupta on July 28, 2015 at 12:19am

पहली बार आपकी  कविता पढ़ी ,वाह बहुत खूब लिखा है आपने .आपकी फैन हो गयी .

Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 11:06pm
रचना पर उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया देने के लिए हृदयतल से आभार आपको आदरणीय Harash mahajan जी । आपको रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ।
Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 10:59pm
आपको रचना अच्छी लगीं आदरणीय चंद्रेश जी तो युँ लगा मेरा लिखना सफल हुआ । आप लेखन के स्वंय मर्मज्ञ है । अतः आपके द्वारा प्रोत्साहन अच्छा लगा ।
Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 10:56pm
प्रोत्साहन के लिए हृदयतल से आभार आपको आदरणीय डा. ब्रिजेश कुमार त्रिपाठी जी । सीखने के क्रम में आप सबका मनोबल बढाना मेरे लिये बेहद उत्साह वर्धक है । आभार
Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 10:49pm
आपके द्वारा सार्थक मार्गदर्शन पाकर मै अभिभूत हुई हूँ आदरणीय विजय निकोरे जी । आपके कहे का मै जरूर अनुमोदन करूँगी और" दावात "को भी ठीक करूँगी । सदा ऐसे ही सचेत करते रहियेगा आपसे यह आशा करती हूँ । सादर नमन

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