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बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। कच्ची छत से पानी की धाराएं निरंतर बह रहीं थीं। टपकते पानी के लिए घर में जगह जगह रखे छोटे बड़े बर्तन भी बार बार भर जाते। उसके बीवी बच्चे एक कोने में दुबके बैठे थे। परेशानी के इसी आलम में कवि सुधाकर टपकती हुई छत के लिए बाजार से प्लास्टिक की तरपाल खरीदने चल पड़ा। चौक पर पहुँचते ही पीछे से किसी ने आवाज़ दी:

"सुधाकर जी, ज़रा रुकिए।" आवाज़ देने वाला उसका एक परिचित लेखक मित्र था।   
"जी भाई साहिब, कहिए।" 
"अरे भाई कहाँ रहते हैं आजकल?  परसों सावन कवि सम्मलेन है। मैं चाहता हूँ कि आप बरसात पर कोई ऐसा फड़कता हुआ गीत पेश करें ताकि लोगबाग मस्ती में झूम उठें।"
सावन और बरसात का नाम सुनते ही घर टपकती हुई छत उसकी आँखों के सामने आ खड़ी हुई, टपकते हुए पानी को संभालने में असमर्थ बर्तन उसे मुँह चिढ़ाने लगे। 
"क्या सोच रहे हैं? अरे देश के बड़े बड़े कवियों की  मौजूदगी में कवितापाठ करना तो बड़े गर्व की बात है।"  
"वह सब तो ठीक है, लेकिन मुझसे झूठ नहीं बोला जाएगा।" 
.

(मौलिक और अप्रकाशित) 

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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 14, 2015 at 11:10pm

आदरणीय योगराज सर, एक शानदार लघुकथा हुई है. एक कवि की जीवन की विडम्बना को  बड़े सधे हुए ढंग से शाब्दिक किया है आखिर सावन को मनभावन कैसे कहे जब कि उसके आश्रय को ही सावन बक्श नहीं रहा. उसका एकमात्र आसरा उसका घर खतरे में है इस सावन के कारण. आखिर झूट कैसें कहे. शीर्षक को सार्थक करती इस सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई ... नमन 

Comment by kanta roy on July 14, 2015 at 10:12pm
बहुत ही सुंदर कथा है यह । इस कथा में कई पहलु है जीवन के ....कवि का मर्म है ....जीवन का दर्द है ....तिरपाल खरीदने की जद्दोजहद भी है । सच में जो पेशेवर कवि या लेखक होते है उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही गंभीर होती है । जीवन की यह भी एक बडी विडंबना कि स्वप्न लिखने वाला जीवन स्वप्न से अक्सर कोशों दूर होता है । सदा की तरह शानदार रचना । नमन सर जी
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 14, 2015 at 9:23pm

"वह सब तो ठीक है, लेकिन मुझसे झूठ नहीं बोला जाएगा।" 

आदरणीय अनुज श्री , बेहतर कथा , सादर बधाई 

Comment by Omprakash Kshatriya on July 14, 2015 at 9:12pm
आ योगराज जी
उम्दा लघुकथा । मुझ से झूठ नहीं बोला जाएगा ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 8:59pm
वाह ! आद0 योगराज जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति । सावन सुहावना होता है सुविधा संपन्न लोगों के लिए । गरीब की तो सिर्फ आह ही बरसती है । बहुत उम्दा । सादर बधाई आपको ।

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