For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - फिल बदीह -- बे ज़ुबाँ कह सके रास्ता भी नहीं ( गिरिराज भंडारी )

 २१२    २१२    २१२    २१२

 *******************************

दोस्त निर्लिप्त है, टोकता भी नहीं

और पूछो अगर बोलता भी नहीं  

 

बोलना जब मना,  फाइदा भी नहीं

बे ज़ुबाँ कह सके रास्ता भी नहीं 

रात तारीकियों से घिरी इस क़दर

मंज़िलें बेपता , रास्ता भी नहीं

 

तुम अभी तो न घेरो अँधेरों मुझे

सब्र थोड़ा करो दिन ढला भी नही

 

अजनबी की तरह हम जिये जा रहे

मिल रहे रोज़ पर वास्ता भी नही

 

इक गज़ल कह दिया है मेरे दिल ने जो

खुश नुमा गर नहीं , मर्सिया भी नहीं

 

जब रहे पास तो , कोशिशें की मगर    

दिल खुला जो नहीं,  तो मिला भी नहीं

 

इक दिया बाल के आजमाओ न यूँ

आँधियाँ भी नहीं, है हवा भी नहीं

 

क़ायदा जिसपे हम ने यक़ीं था किया

दौड़ना छोड़िये वो चला भी नहीं

 

जो नज़र से गिरा तो गिरा इस क़दर

मैने खोजा नहीं ख़ुद मिला भी नहीं

***************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 1048

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 22, 2015 at 12:46pm
आदरणीय गिरिराज जी, अच्छे अश’आर हुए हैं। दाद कुबूल करें
Comment by Rahul Dangi Panchal on June 22, 2015 at 7:52am
समझाने हेतु शुक्रिया आदरणीय

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2015 at 6:48am

आदरनीय राहुल भाई , सरहना और सलाह के लिये आपका आभारी हूँ ।

हाल पूछे जो हम बोलता भी नहीं  ,     सलाह बहुत अच्छा है , भाव अलग है ,  मै पहले मिसरे में खुद को गलत करने से न टोकने की बात कर रहा  हूँ , तो द्दोद्सरे मिसरे में उसला हाल कैसे पूछँगा ,  मै ये कहना चाहता हूँ कि न तो वो खुद मुझे गलत करने से टोकता न ही मै पूछता हूँ कि क्या गलत है तो बताता ।

लना जब मना, फाइदा भी नहीं।    मिसरे मे   बो छूट गया है  इसे  कृपया पाठक यूम पढें  ---

बो लना जब मना, फाइदा भी नहीं।

इक दिया बाल के आजमाओ न यूँ

आँधियाँ भी नहीं, है हवा भी नहीं     ---   इस  शे र मे मै वही तो बोल रहा हूँ जो आप समझे  हैं ---- जहाँ आँधी और हवा दोनो नही है अर्थात जहाँ खतरा ही नहीं वहाँ खुद को क्यों आजमा रहें हैं ।   आजमाओ न यूँ   --- आप न को पढ़्ना भूल गये हैं शायद ॥

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 21, 2015 at 8:53pm
आदरणीय गजल बहुत ही सुन्दर हुई है । मैं अपनी छोटी समझ से कुछ सुझाव की हिम्मत कर रहा हुँ अगर मैं गलत हूं तो क्रपया क्षमा कर देना और मार्ग दर्शन करना।

और पूछो अगर बोलता भी नहीं इस मिसरे को कुछ इस तरह देखे
हाल पूछे जो हम बोलता भी नहीं । सन्रम

लना जब मना, फाइदा भी नहीं। यह मिसरा बेबहर है शायद लना के ल से पहले कोई अक्षर आपसे छूट गया हो अगर नहीं तो इस मिसरे का क्रपया अर्थ समझाए। सादर।


इक दिया बाल के आजमाओ न यूँ
आँधियाँ भी नहीं, है हवा भी नहीं । आदरणीय इस शेर का अर्थ समझ नहीं पाया जब हवा और आँधी ही नहीं तो आजमाना कैसा क्रपया समझाए। सादर सन्रम।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 21, 2015 at 12:44pm

आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2015 at 10:08am

रात तारीकियों से घिरी इस क़दर

मंज़िलें बेपता , रास्ता भी नहीं

 बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आ० गिरिराज जी बहुत बहुत बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 20, 2015 at 5:54pm

आदरणीय परि एम श्लोक भाई , हौसला अफज़ाई का दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 20, 2015 at 5:53pm

आदरणीय सुशील सरना भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 20, 2015 at 5:53pm

आदरणीय विजय भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद  शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 20, 2015 at 5:52pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपका बहुत बहुत आभार ,सराहना के लिये और दो शे र पसंद करने के लिये ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
20 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service