गागा ल/गा लगा/लल गागा/ लगा लगा   
 
 कुछ और मुझ में जीने की हसरत बढ़ा गया
वादा किया था आने का, सचमुच में आ गया. 
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 इक रोज़ मुझ से कहते हुए “ख़ूब लगते हो”
 वो अपनी आँख का मुझे काजल लगा गया. 
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काफ़िर अगर जो मैं न बनूँ  और क्या बनूँ ?
 दिल के हरम को छोड़ के मेरा ख़ुदा गया.
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 उट्ठा मैं हडबड़ा के टटोला इधर उधर,
 ख़्वाबों में कौन आया, जगाया, चला गया.  
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 पत्ते झडे जो पक के करे उन का सोग कौन  
 अफ़सोस है खिज़ा को... कि पत्ता हरा गया.  
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 मेरी दुआएँ हैं कि उसे मंज़िलें मिलें 
 जो मुझ से राह पूछ के मुझ को गिरा गया. 
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 जुगनू था “नूर” और तो क्या उस के बस में था 
 लड़ना वो तीरगी से अगरचे सिखा गया. 
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 निलेश "नूर"
 मौलिक/ अप्रकाशित 
Comment
शुक्रिया आ. मनोज कुमार जी
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