For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

टपकती टोंटियाँ (लघु कथा)// शुभ्रांशु पाण्डेय

चटक धूप. आसमान में उड़ते-उड़ते गला सूख गया था. पानी की एक बूँद कहीं नजर नहीं आ रही थी. पानी या तो बोतलों में बन्द था या  वहाँ स्वीमिंग पूल में था , लेकिन स्वीमिंग पूल के ऊपर लगी जाली के कारण पाना सम्भव नहीं था.

इस प्रचंड गर्मी में सजे-धजे साफ़-सूथरे शहर में प्यास से व्याकुल चिडियों को खसर-खसर करते वो चापाकल, उनके किनारे की खुली नालियाँ, लगातार टपकती म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की टोटियों की बहुत याद आ रहीं थी.

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 2:09am

इस लघुकथा के माध्यम से आजके विकास का अत्यंत ही असंवेदनशील चेहरा सामने आया है. समस्या को समुचित संवेदना के साथ उठाती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई.
शुभ-शुभ

Comment by Shubhranshu Pandey on May 27, 2015 at 9:56am

आदरणीय गणेश भैया,

कथा पर आने के लिये आभार.

सादर.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2015 at 5:29pm

विकास के इस दौड़ में कई चीजे भूलती जा रहीं हैं, एक अति महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान आकृष्ट कराती हुई अच्छी कथा हुई है, बहुत बहुत बधाई.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 24, 2015 at 10:23pm

आदरणीय डा आशुतोष जी, 

घर की छत पर रखा एक प्याला जल इस नकारात्मक विचार का समाधान है. अगर हर घर के छत पर ये प्याला भरा हो तो आपके यहां नहीं लेकिन कहीं तो ये प्यासे जल पीयेंगे ही. कथा पर आने के लिए आभार.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 24, 2015 at 10:19pm

आदरणीय श्री सुनील जी, 

शहर का मतलब ही व्यवसाय का केन्द हैं. यहां कई बातों के लिये प्रयास किये जाते हैं. स्वाभाविक रुप से मिलने वाली चीज को भी दुरुह बना दिया जाता है. 

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 24, 2015 at 10:16pm

आदरणीय विनय जी, 

उन टपकटी टोटियों के सहारे चिडियां ही नहीं कई जानवर अपनी प्यास बुझा लिया करते थे. 

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 24, 2015 at 10:14pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी, 

प्लास्टिक के बन्द ढक्कनों ने मानवता के ढक्कन को भी बन्द कर दिया है. अब होटल वाले पानी देने के बदले बोतल बेचने का प्रयास ज्यादा करते हैं. 

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 24, 2015 at 10:10pm

आदरणीय श्याम नारायण जी, 

कथा पर आने के लिये आभार.

सादर.

Comment by kanta roy on May 24, 2015 at 12:43pm
वाह !!! बहुत ही सुंदर चित्रण पानी की प्यास का ...... प्यासा पंछी शहरीकरण में कहीं मर रहा है ...... सुंदर और साफ शहर कब असहायों का रहा है .... स्वीमिंग पूल की जालियाँ .... पोखर कुओं की विलुप्तता .... कहाँ लेकर जायेगी हमें । बधाई स्वीकार करे आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 24, 2015 at 12:30pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी ..चिड़िया क्या हर जीव याद कर रहा है वो मंजर ..सच में बिनाश का ही समय आ गया है ..सोचने के लिए प्रेरित करती इस शानदार लघु कथा के लिए तहे दिल बधाई सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service