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सम्बल (लघु कथा) // शुभ्रांशु पाण्डेय

भूख और थकावट से चूर दोनों असहाय भाई-बहन एक-दूसरे से लिपट कर लेट गये.

आज सुबह के भूकम्प में अपने मां-पापा को खो देने के बाद से ये छः वर्षीय भाई ही तो उसका सम्बल था.

दो वर्ष छोटी बहन को ऐसा लग रहा था जैसे अपने भाई के सीने पर सर रख देने से ही उसकी सारी समस्याओं का निदान हो गया हो.

अचानक खयाल आया, उसके भाई के लिये आखिर सम्बल कौन है ?

उसके नन्हे हाथ अनायास भाई के गालों पर फैल गये आँसुओं को साफ़ कर उसके धूल भरे बालों को सहलाने लगे. 

==================

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Shubhranshu Pandey on May 21, 2015 at 10:40am

आदरणीय केवल प्रसाद जी, 

प्रोत्साहन के लिये आभार.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 21, 2015 at 10:35am

आदरणीय गोपाल नारायण जी, 

कथा पर विचार देने के लिये आभार.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 21, 2015 at 10:31am

आदरणीय मिथिलेश जी, 

प्रस्तुत चित्र ने ही कथा लिखने की प्रेरणा दी थी. प्रोत्साहन देने के लिये घन्यवाद.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 21, 2015 at 10:29am

आदरणीया प्राची जी, 

बाल मनोवोज्ञान को समझते हुये सुन्दर विचार दिया है आपने.

पाठक जब कथा के साथ विश्लेषण करता है तो उसके सफ़ल होने का भान होता है.

प्रोत्साहन के लिये आभार.

सादर.

Comment by shree suneel on May 21, 2015 at 2:02am
आदरणीय शुभ्रांशु जी, अत्यंत मार्मिक, संवेदनशील लघु-कथा कही अापने.
अंतिम पंक्तियों ने तो भावुक हीं कर दिया.
बधाई आपको.
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2015 at 10:34pm

आ0 शुभ्रांशु भाई जी.  दिव्य दृष्टि व गहन भावों की अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें, सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 20, 2015 at 9:11pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी

बहुत संवदन शील तंतु को पकड़ा आपने . आपको बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 20, 2015 at 8:50pm

छंदोत्सव में प्रदत्त चित्र को लघुकथा में खूब पिरोया है 

बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 20, 2015 at 10:59am

मुश्किल वक्त अचानक बाल मन को कितना परिपक्व बना देता है..... आपदा का मासूम मन पर क्या असर पड़ा होगा, कैसे दो नन्हे 

बालक एक दूसरे का संबल बने होंगे, इसकी बहुत ही संवेदनशील प्रस्तुति. 

चलचित्र सा पटल पर दौड़ गया हर शब्द के साथ.

बहुत ही सधी और खूबसूरत अभिव्यक्ति आ० शुभ्रांशु जी 

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