212 - 212 - 212 - 212  | 
  | 
जिंदगी में नहीं कोई गम क्या करें  | 
दिख रही बस खुशी मुहतरम क्या करें  | 
  | 
टूटकर इश्क भी हमसे कब हो सका  | 
काम थे और दुनिया में हम क्या करें  | 
  | 
आप ही गेसुओं की तरफ देखिए  | 
जो हमें दिख रही आँख नम क्या करें  | 
  | 
ये शज़र, ये नदी, वादियाँ भी सरल  | 
आदमी को मिले पेचो-ख़म क्या करें  | 
  | 
मजहबों ने सिखाया सुकूं चैन गर  | 
आपकी जेब में फिर ये बम क्या करें  | 
  | 
तिश्नगी आब की, ख़्वाहिशें ख्वाब की  | 
मर रहीं हसरतें दम-ब-दम क्या करें  | 
  | 
एक अरसा हुआ है खुदी से मिले  | 
आशना लग रहे खुद से कम क्या करें  | 
  | 
दो खिलौने बनाए है जर्रे से फिर,  | 
हो गया आदमी खुशफहम क्या करें  | 
  | 
------------------------------------------------------  | 
  | 
बह्र-ए-मुत्दारिक मुसम्मन सालिम  | 
अर्कान – फाइलुन /फाइलुन /फाइलुन / फाइलुन  | 
वज़्न – 212/ 212/ 212/ 212  | 
Comment
आदरणीय मिथिलेश भाई , एक और अच्छी गज़ल कहने के लिये हार्दिक बधाइयाँ । आदरणीय खुर्शीद भाई जी ने बढ़िया सलाह दी है , जो काबिले गौर हैं ।
तिश्नगी आब की, ख़्वाहिशें ख्वाब की
मर गई हसरतें दम-ब-दम क्या करें --- मुझे लगता है - सानी को ऐसा कहें तो जियादा सही हो -
मर रहीं हसरतें दम-ब-दम क्या करें --- चूँ कि सांसे ज़ारी हैं , तो मेरे ख्याल से मरने की क्रिया भी ज़ारी लगनी चाहिये , मर चुकी कहें तो , मरने की क्रिया ख़त्म हो चुकी है , ऐसा लग रहा है । सोच के देखियेगा ॥
जिंदगी में नहीं कोई गम क्या करें  | 
दिख रही बस खुशी मुहतरम क्या करें आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ऐसी ही ख़ुशी बनी रहे । अच्छी बात है । बहुत बहुत बधाई ।  | 
वाह वाह अदरणीय बहुत खूब गजल....
आदरणीय राजेश दीदी ..
देखिये करता हूँ.
आपने मिसरा-ए-उला बहुत बढ़िया सुझाया है .. आभार
मजहबों ने सिखाया सुकूं चैन गर
देखिये ठीक है देखियें नहीं होता
मजहबों ने सिखाया है चैनो-अमन----मजहबों ने सिखाया सुकूं चैन गर ---करेंगे तो मेरे ख़याल से बात बन जायेगी
आप ही गेसुओं की तरफ देखियें---यहाँ देखिये कर दीजिये टंकण त्रुटी आ गई है जो दोष पैदा कर रही है
तिश्नगी आब की, ख़्वाहिशें ख्वाब की  | 
मर गई हसरतें दम-ब-दम क्या करें-----बेहद खूबसूरत शेर  | 
  | 
एक अरसा हुआ है खुदी से मिले  | 
आशना लग रहे खुद से कम क्या करें----क्या बात क्या बात सुन्दर ग़ज़ल हुई है मिथिलेश जी दिली दाद कबूलें  | 
  | 
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
    © 2025               Created by Admin.             
    Powered by
    
    
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online