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गजल- मुझे शायरी में पुकार दे!

११२ १२ ११२ १२

तु गजल में थोडा खुमार दे!
तु जरा सा और सँवार दे!!

तेरे लफ्ज तेरी जमीन है!
इन्हें आँसुओं से निखार दे!!

उसे भूल जा है जो बेवफा!
ये लिबास गम का उतार दे!!

यूं घुमा फिरा के न बात कर!
मुझे साफ साफ नकार दे!!

मैं बिगड गया मुझे डाँट माँ!
मेरी जिन्दगी को सुधार दे!!

या खुदा तु कह दे घटाओं से!
मेरे खेत को भी दुलार दे!!

कि मैं दफ्न हूँ मेरे शे'र में!
मुझे शायरी में पुकार दे!!


मौलिक व अप्रकाशित!

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Comment

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Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:54am

आदरणीय राहुल जी यह आपकी विनम्रता है वरना यहाँ तो लोग इस्लाह पर भड़क जाते हैं , और अपना किताबी ज्ञान झाड़कर इस्लाह करने वाले को ही कमतर साबित करने की कोशिश करने लगते है |सादर नमन आपकी लगन को |शुरुआत हर शायर तुकबंदी से ही करता है |

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 11:38am

आदरणीय khursheed khairadi जी मैं मुझे इस मंच पर आने से पहले ये भी नहीं पता था कि गजल मात्रा व बहर मे होती है मैं इन नामो से परिचित तक नही था केवल तुकबन्धी करता था ये सब आप जैसे आदरणीयों की ही मेहरबानी है जो मुझमे चुट मुट सुधार हुआ है ! मैं आप सब में सबसे छोटा हुँ तो इस लिए मुझे आप सबके आशिर्वाद की जर्रत है ! सादर नमन!

Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:24am

तेरे लफ्ज तेरी जमीन है!
इन्हें आँसुओं से निखार दे!!

यूं घुमा फिरा के न बात कर!
मुझे साफ साफ नकार दे!!

आदरणीय राहुल साहब ,  ग़ज़ल के सभी अशहार के मूल भावों को और अधिक निखर कर आपने जो बा-बहर ग़ज़ल प्रस्तुत की है उसका एक एक शेर झूमने को मज़बूर करता है |ग़ज़ल आपकी मेहनत का नतीजा है | आदरणीय गिरिराज जी और मैंने तो केवल कुछ शंकाओं का निवारण भर किया था |अदब में एक ही विधा पर होने से आपस में बंधुत्व होने के नाते अपना फ़र्ज़ निभाने का प्रयास भर किया है |सादर 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 9:19am
आदरणीय गिरीराज जी आपके व आदरणीय खुर्शीद जी के आशिर्वाद से ही मैं कुछ सुधार कर पाया! मैं आपका बहुत आभारी हुँ! सादर
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 9:17am
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत बहुत धन्यवाद! मैं आपके सुझाव पर अवश्य गौर करुंगा सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2015 at 8:38am

आदरणीय राहुल भाई , आपकी लगन और मेहनत दोनों सलाम ।

ग़ज़ल सुधर के बहुत सुन्दर हो गई है , आपको दिली बधाइयाँ और शुभकामनायें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 8:29am
कि मैं दफ़्न हूँ हर लफ्ज़ में
मुझे शायरी में पुकार दे।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 8:27am
आखिरी अशआर में मेरे शेर में के स्थान पर लफ्ज़ या और कुछ कर लीजिये क्योकि शेर और शायरी का अर्थ तो एक ही है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 8:24am
वाह वाह वाह राहुल भाई गुणीजनों के मार्गदर्शन के बाद क्या ग़ज़ल निकल आई। बहुत ही बेहतरीन। एक एक अशआर कमाल का। दिल से दाद कुबूल कीजिये। ये आपकी बेहतरीन ग़ज़लों में से एक होगी। आंनद आ गया पढ़कर। कमाल हो गया है आपकी कलम से। क्या कहन है। शेर दर शेर झूम रहा हूँ बस पढ़कर।
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 8:19am
आदरणीय गिरीराज जी और आदरणीय khursheed khairadi जी मैनें गजल में कुछ सुधार का प्रयत्न किया है क्रपया जरा एक फिर मेरा मार्ग दर्शन करने का कष्ट करें! सादर विनती!

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