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गजल- वो लफ़्ज लफ़्ज गद्दार रखनी है

2212 122 1222

हर शेर में ये दरकार रखनी है!
वो बेवफा तो हर बार रखनी है!!

अशआर शेर अशआर रखनी है!
वो लफ़्ज लफ़्ज गद्दार रखनी है!!

जब तक वो खुदखुशी कर न ले मुझको!
हर लफ़्ज एक तलवार रखनी है!!

बीमार हूँ तो हँस कर दिखाऊं क्यूं!
ये नज़्म भी तो बीमार रखनी है!!

तू मर अभी नहीं सकता ऐ'राहुल'!
के बात और दो चार रखनी है!!


मौलिक व अप्रकाशित!

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Comment by gumnaam pithoragarhi on December 12, 2014 at 6:19pm

वाह ग़ज़ल अच्छी लगी भाई जी बधाई

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 12, 2014 at 9:58am
हा! हा ! सोमेश जी माफ करें पर उस वक्त दिल दिमाग कुछ ऐसा ही कह रहे थे! बहुत बहुत धन्यवाद आपका! सादर आभार!
Comment by somesh kumar on December 12, 2014 at 9:52am

जो हो तू बदनाम वो शोहरत ना गवारा मुझको 

ना कहूँ बेवफा तुझे लोग कहते रहें बेचारा मुझकों 

दिल की तीरगी ना जाए तो बेकाम है सितारा मुझको 

जो तू ना मिला तो ना चाहिए कोई सहारा मुझको 

Comment by somesh kumar on December 12, 2014 at 9:45am

उसकी बेहयाई भी वफा सी लगे 
वो जहर पिलाए और दवा सा लगे 
लाख सितम उसके कटघरे में मैं बेशक 
मैं ईबादते-इश्क हर हाल वो खुदा सा लगे 
अच्छी गज़ल भाई जी पर हम तो बेवफा को भी माफ करने में यकीन रखते हैं 

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