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मिलना तो दिल खोल के, मिल लो मेरे यार।

छोटी सी है ज़िन्दगी, तुम छोड़ो तकरार ।।

 

बहुत दिनों से गर्म है, सपनो के बाज़ार ।

बदल रहे है देखकर, रिश्तो के आसार।।

 

आँखे भर भर आ गई, छूकर उनके पाँव।

यादों में फिर छा गया, बरगद वाला गाँव।।

 

मौसम की पदचाप भी, गुमसुम और उदास।

आँगन की तुलसी डरी, सहमा देख पलाश ।।

 

रहने दो गुल बाग में, गुंचा और बहार ।

हरियाली का इस तरह, ना बाटो सिंगार।।

 

मालिक के  दीदार से,  खिलते सबके दीद

दीप जला मांगे दुआ, दीवाली में ईद  ।।

 

रावण वध तो लक्ष्य है, सच्चाई के नाम ।

फिर काहे का सोचना, किसके कितने राम ।।

 

बहुत कठिन है प्रेम की, राह करे बदनाम ।

 फिर मीरा क्या सूर क्या, क्या राधा क्या श्याम ।।

 

पाई पाई जोड़कर, क्या करना मिथिलेश ।

इक दिन सब कुछ छोड़कर, जाना है परदेश ।।

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  - मिथिलेश वामनकर 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 5, 2014 at 8:31pm

आदरणीय नरेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 9:40pm

बहुत सुन्दर दोहे लिखे हैं मिथिलेश जी जीवन की सच्चाई को गूंथा है दोहावली में कुछ बातों पर ध्यानाकर्षित करना चाहूँगी

एक तो दोहों में १३ ११ के बीच में यति जरूर लगाएं 

बहोत दिनों से गर्म है सपनो के बाज़ार ।------बहुत (सही शब्द )कर लें गेयता सही हो जायेगी मात्र १४ हो रही हैं  

बदल रहे है देखकर रिश्तो के आसार।।

 

रहने दो गुल बाग में गुंचा और बहार ।

गुलशन की हरियाली का ना बाटो सिंगार।।-----विषम चरण में मात्राएँ १४ हो रही हैं 

मालिक का दीदार से  खिलते सबके दीद---मालिक के कर लें 

दीप जला मांगे दुआ दीवाली में ईद  ।।

बहुत कठिन है प्रेम की राह करे बदनाम ।

मीरा सूर कबीर क्या, क्या राधा क्या श्याम ।।----विषम चरण में गेयता भंग है 

 

आँखे भर भर आ गई छूकर उनके पाँव।

यादों में फिर छा गया बरगद वाला गाँव।।-----क्या कहने बहुत सुन्दर 

मौसम की पदचाप भी गुमसुम और उदास।

आँगन की तुलसी डरी सहमा देख पलाश ।।------बहुत बढ़िया 

 

पाई पाई जोड़कर क्या करना मिथिलेश ।

इक दिन सब कुछ छोड़कर जाना है परदेश ।।-----शानदार 

आपने सभी दोहे बहुत अच्छे लिखे हैं जिनके लिए हार्दिक बधाई आपको 

इंगित दोहों में थोड़े से सुधार  की गुंजाइश है जो आप सहजता से दुरुस्त कर लेंगे ऐसा मेरा विश्वास है 

 

 

 

 

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