For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भारत की कुण्डली में तीन अमंगल ग्रह ( आल्हा छंद ) अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

आल्हा छंद 

बरसों पहले बंधु बनाकर, चाउ -माउ चीनी मुस्काय।                                       

और उसे हम बड़े प्यार से,  भैया कहकर गले लगाय।।                            

 

हर आतंकी पाकिस्तानी, चाल चीन की समझ न आय ।                                                             

दो मुँह वाला अमरीका है, विकिलीक्स दुनिया को बताय।।                       

 

एक ओर है  पाक समस्या , और कहीं चीनी घुस जाय ।                           

*राम - राम कहता अमरीका, छुरी बगल में लिया दबाय॥                            

 

इन तीनों का  नहीं भरोसा, कब गिरगिट सा रंग दिखाय ।                                       

किस- किस का हम रोना रोयें,  जो चाहे हम को चमकाय।।                        

 

अमरीका अब बेनकाब है,  फिर भी अपनी अकड़ दिखाय।                                   

हम से अपना  मतलब साधे, और हमें  ठेंगा दिखलाय।।                          

 

एक भाग कश्मीर हड़पकर,  पाक  भेड़िया फिर  गुर्राय ।                                

चीन ले लिया मानसरोवर,  अब तक जिसे छुड़ा ना पाय।।                               

 

एक  हो गये  सभी लुटेरे,  राहु – केतु बन  हमें सताय ।                         

हम कमजोर हैं जान गया है, ड्रेगन फिर से आँख दिखाय।।                    

 

सांप समझ  बैठे ड्रेगन को, सरहद पर हम बीन बजाय ।                               

काबू में जब कर न सके, सिर,  दर्द हमारा  बढ़ता जाय ।।

अरबों  नकली नोट छापकर , पाक उसे भारत  भिजवाय ।                           

*कोई बस ना चले हमारा ,  खिसियाकर बस हम रह जांय।।                                       

 

देता पाकिस्तान प्रशिक्षण,  आतंकी भारत आ जाय ।                                       

बमबारी, गोलीबारी कर,  खूब तबाही  दिया मचाय ।।                         

 

आएगा न  कोई बचाने ,  करना  होगा  हमें  उपाय ।                                     

ठोस नीति से काम बनेगा,  ढुल- मुल नीति काम ना आय।।                                              

 

चीन किसी की बात न माने, कौन उसे कब तक समझाय ।                                  

मिली भगत है पाक देश से,  बातों से हमको बहलाय।।                                     

 

अमरीका का नहीं भरोसा,  यहाँ कहे कुछ वहाँ बताय ।                                 

दुश्मन को पहचान गए हम,  चाहे भेष बदलकर आय।।                                           

 

मन काला है,  नीयत खोटी,  दोस्त नहीं दुश्मन कहलाय ।                      

खेल, कला या किसी बहाने, दुश्मन देश में घुस न पाय ।।                    

 

आजादी से बाद आज तक,  हम धोखे पर  धोखा खाय।                         

अब भी अगर सम्भल न पाए,  फिर तो बस भगवान बचाय।। 

.......................................................................                                             

मौलिक व अप्रकाशित  

*संशोधित 

Views: 828

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 2, 2014 at 12:42pm

आदरणीय विजय शंकर भाई,

आप ठीक कहते हैं , कई सौ बरस की गुलामी के बाद भी हमें अच्छे बुरे की पहचान न हो पाई इसका  एक प्रमुख कारण यही है कि हम अपने अतीत से कुछ सीखना ही नहीं चाहते। बार- बार जलील होकर भी हम उन्हीं  देशों  का दामन थामने  मज़बूर क्यों हो जाते हैं ? काश हम अपने साथ ही आज़ाद हुए कुछ छोटे देशों से ही कुछ सीखते कि सम्मान और गैरत क्या चीज है, किसे कहते हैं।  

मैने अपनी बात छंद में रखने का प्रयास किया है , रचना आपको पसंद आई , हृदय से धन्यवाद आभार 

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 1, 2014 at 9:11pm
"आजादी से बाद आज तक, हम धोखे पर धोखा खाय।
अब भी अगर सम्भल न पाए, फिर तो बस भगवान बचाय।। "
गंभीर विषय लिया है आपने , आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी , एक विचारणीय प्रश्न हमारे सामने सदैव यह रहता है कि जो लोग अपने अतीत से नहीं सीखते वे सदैव घाटे में रहते हैं , हम विलक्षण प्रतिभा वाले वर्तमान से ही भ्रमित हैं , अतीत में तो कई कारणवश हम जाते ही नहीं , अतीत से कुछ सीखना तो दूर हम अपने अतीत को न केवल अस्वीकार करते रहते हैं वरन उसे अपने लाभ और सुविधा के अनुरूप स्वीकार करते हैं , नई पीढ़ी का सामान्य अतीत ज्ञान गज़ब का है , पर हम ऐतिहासिक चेतना से मुक्त एवं प्रसन्न हैं .
आपको इस प्रभाव करती रचना के लिए बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
2 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service