For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

है जहाँ में सदा तन के चलता पिता।
हँस दूँ इक बार में घोड़ा बनता पिता।
वो जगत का पिता ये है मेरा पिता।
नाम इससे लिया उसने लगता पिता।

दिन मिरे थे कभी बेफिकर वो सभी
मौज करता रहा कर्ज भरता पिता

इम्तहानों का जब भी पड़ा दौर है
नींद सोया कभी, रात जगता पिता

ठोकरें जब कभी भी लगीं हैं मुझे
दर्द मुझको हुआ आह भरता पिता

कब मेरे नाम से उसकी पहचान हो
ख्वाहिशें हैं सदा रब से करता पिता

देखता है पिता बढ़ रहा कद मिरा
देखती है नजर रोज ढलता पिता

इस जहाँ का पिता देख पाया न मैं
कुछ नहीं वो अलग तुझसे लगता पिता

.
सीमा हरि शर्मा 15.09.2014

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 716

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seemahari sharma on September 18, 2014 at 10:18am
आदरणीय मैं मतला बदल रहीं हूँ बहुत बहुत आभार आपका मार्गदर्शन के लिये ।
Comment by khursheed khairadi on September 18, 2014 at 10:06am

आदरणीया दीदी सीमा हरि जी अनुज भी अभी ग़ज़ल का एक नवसाधक ही है ,मेरी अल्प जानकारी के अनुसार मतले में ही तुक की छूट ली जाती है ,तथा मतले में चयनित तुक ही शेष अशहार में रवां होता है |शेष आप मंच के विद्जनों की इस्लाह पर संशोधन कर सकती हैं ,मैं अभी इस काबिल नहीं हूं कि अपने अग्रजों की रचनाओं में हस्तक्षेप करूं |कृपया अन्यथा न लें और अनुज पर पूर्ववत स्नेह बनाये रखें |

Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 3:09pm
आदरणीय khursheed Khairadi बहुत शुक्रिया आपने मेरी गजल को इतना समय दिया मैंने इस गजल में रदीफ़..आ पिता और काफिया .नत रत गत आदि लिया है गजल के बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानती हूँ तुकान्त के हिसाब से मुझे भी थोड़ा खल रहा है विद्वजन कहें तो मैं ऐसा भी कर सकती हूँ
धूप सहकर सदा छाँह करता पिता।
मुश्किलों में सदा ढाल बनता पिता।
Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 2:46pm
आभार Laxman dhami जी।
Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 2:43pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत आभार आपकी प्रतिक्रिया अत्यंत उत्साहवर्धक है अभिभूत हूँ।सादर
Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 2:32pm
ह्रदय से शुक्रिया जितेन्द्र'गीत'जी उत्साहवर्धन के लिये
Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 12:33pm
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ह्रदय से बहुत बहुत आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया से प्रोत्साहन मिला है सादर
Comment by seemahari sharma on September 17, 2014 at 12:26pm
आदरणीय Shyam Narain Verma जी बहुत बहुत आभार
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 11:17am

आदरणीया बहन सीमा हरि जी ,इस बहुत ही भावुक एवं मर्मस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई l

Comment by khursheed khairadi on September 17, 2014 at 9:50am

कब मेरे नाम से उसकी पहचान हो
ख्वाहिशें हैं सदा रब से करता पिता

आदरणीया सीमा हरि जी ,बहुत ही भावुक एवं मर्मस्पर्शी रचना है |कोटि अभिनन्दन ,काव्य पक्ष सशक्त है |मतले में काफ़िये का शब्द (रवी ) यानि तुक -उ +नता है और मतले के तुक 'उनता' का सभी अशहार में निर्वहन होता तो ग़ज़ल और अधिक सुन्दर बन पड़ती |वैसे मैं ख़ुद अभी ग़ज़ल का एक नवसाधक हूं ,मेरा मंतव्य रचना की श्रेष्टता तथा आपकी विद्वता पर संदेह करना नहीं है ,चूँकि यह एक ओपन मंच है अतः रचनाकर्मी आपस में सोहार्दपूर्ण टिप्पणी कर सकते हैं ,कृपया अन्यथा न लेते हुए अपने अनुज पर स्नेह बनाए रखियेगा |सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
13 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service