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देर हो रही है
जागो-जागो
आओ रे भगाओ रे भेडिए
इधर व्यवस्था के पालने में
सोया हे प्रजातंत्र
और सत्ता के गलियारे तक
आ गये है भेडिए।

समाज के हाथ जल रहे है
रक्ततप्त होती मशाल पकडते-पकडते । 
कानून के धुप्प अंधेरा होने का
अब ज्यादा देर नहीं है
हाथों से छुट पडने वाली हे मशाल
कानून के धुप्प अंधेरा होने का
इन्तजार कर रहे है भेंडिए ।

शेष नहीं हे अब समय शेष
देर हो रही है
आकांक्षाओं षड्यंत्रों को
उघाड़ती हुई कलम की पूकार कहीं दब न जाए
हुआँ  हुआँ के शोर में
यह शोर
दिशाओं को नंगा
आकाश को अंधा
धरती को बांझ करने की
पुरजोर साज़िश में
बढता ही जा रहा है।
भेडियो के जबडे से टपकता
संस्क्रति का खून है।
और विक्रति की नेल पोलिश है 
भ्रष्टाचारी पंजों के नाखून में
इन्हें देख
धिधिया रही हे
मिमिया रही है
कुंकुआ रही है
तमाम अवाम ।
देर हो रही है
जागाूे-जागो
आओ रे भगाओ रे भेडिए । 

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by rawal rajesh on September 12, 2014 at 9:37pm

Shukriya VIJAI SHANKAR JI. Shukriya Honsla afjaik liye

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 10, 2014 at 12:24pm
" इधर व्यवस्था के पालने में
सोया हे प्रजातंत्र
और सत्ता के गलियारे तक
आ गये है भेडिए "
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आदरणीय रावल राजेश जी, बधाई .

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