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कुण्डलिया ... मृगतृष्णा

( गुरुजनों की समीक्षार्थ प्रस्तुत )

तृष्णा मृग की ज्यों उसे, सहरा में भटकाय |

तपती रेत में देता , जल का बिम्ब दिखाय ||

जल का बिम्ब दिखाय,  बुझे पर प्यास न उसकी|

त्यों माया से होय , बुद्धि कुंठित मानव की ||

प्रज्ञा का पट खोल, नाम ले राधे - कृष्णा |

सुमिरन करते साथ, मिटेगी हरेक तृष्णा ||

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on June 24, 2014 at 5:25pm

देता तपती रेत में .....कर सकती हैं | प्रयास करती रहें बहुत जल्दी सफल होंगी बाकि आ० गोपाल जी ने शिल्प विधान बता दिया है उसी पर प्रयास करें ...फिलहाल इस भाव पूर्ण कुण्डलिया के लिए बहुत- बहुत बधाई| 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 24, 2014 at 3:21pm

शालिनी जी

दोहा दीखता आसान  है इसका शिल्प बहुत कठिन है i विषम चरणों में इसकी रचना 4 +4 +3+2 या 3+ 3  +2 + 3  +2 होती है और (चरणांत  में  सगण (११२ )रगण(२१२ ) या नगण (१११ )में एक का होना आवश्यक है i   इसके साथ सम चरणों का विन्यास 4 +4 +3 या 3+ 3  +2 + 3  होगा i अब अपना दोहा देखिए i दुसरा द्वतीय चरण है -  तपती रेत  में देता -यहाँ  मात्रिक विन्यास 4 + 3 +2 +4  है  जो गलत है  i दोहे में प्रथम विन्यास दो बार आता है इसी से यह दोहा कहलाता है i साथ ही आपका चरणांत (2 2 2 )है जो दोहे में नहीं होता  i  अब अगर ऐसा कर दे  -तप्त रेत में भी उसे - तो विन्यास 3+ 3  +2 + 3  +2 हो जायेगा  और चरणांत

भी (२१२) सही हो जायेगा  i  आप दोहे का अच्छा अभ्यास कर ले तब रोला छंद की बात करेंगे i  रचना में घबराये नहीं i आप में छमता है  i  Be brave.

 

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