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फायदा क्‍या गजल

2122 2122 1222

क्‍या शिकायत करू मैं इस जमानें से

फायदा क्‍या है किसी को बतानें से

अब मजारो की तरफ यूँ न देखो तुम

आ सकेगें हम न आँसू बहानें से

बदनसीबी साथ मेरे उम्र भर थी

सो रहा हूँ चोट खा कर जमानें से

यार मेरे तुम बहाओ न अश्‍को को

फायदा क्‍या अब यहाँ दिल जलानें से

रूठ कर हम से चले ही गये वो जब

साथ ना अब तो मिले कुछ बतानें से

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर

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Comment by Akhand Gahmari on April 20, 2014 at 5:18pm

 आदरणीय मंच संचालक महोदय अग्रजो की राय एवं मार्गदर्शन के अनुसार मेरी गजल में संसोधन कर इस गजल को पोस्‍ट करने की क़पा करे

क्‍या शिकायत मैं करू इस जमाने से

फायदा क्‍या है किसी को बताने से

अब मजारों की तरफ यूँ न देखो तुम

आ सकेगें वो न आँसू बहाने से

बदनसीबी साथ मेरे उम्र भर थी

सो रहा हूँ चोट खा कर जमाने से

यार मेरे तुम बहाओ न अश्‍कों को

फायदा क्‍या अब यहाँ दिल जलाने से

रूठ कर हम से चले ही गये वो जब

साथ ना अब तो मिले कुछ बताने से

Comment by Akhand Gahmari on April 20, 2014 at 11:36am

आदरणीय राम शिरोमणी पाठक जी रचना पर पर्याप्‍त समय देने एवं मार्गदर्शन के लिये हम आपके सदा अभारी रहेगें हमारा प्रणाम स्‍वीकार करें आशा है कि हम आपके बताये मार्गपर चलने में सफल होगें आर्शीवाद प्रदान करे

Comment by Akhand Gahmari on April 20, 2014 at 11:36am

आदरणीय अरून शर्मा जी रचना पर पर्याप्‍त समय देने एवं मार्गदर्शन के लिये हम आपके सदा अभारी रहेगें हमारा प्रणाम स्‍वीकार करें आशा है कि हम आपके बताये मार्गपर चलने में सफल होगें आर्शीवाद प्रदान करे

Comment by Akhand Gahmari on April 20, 2014 at 11:35am

आदरणीय ब्रजेश नीरज जी रचना पर पर्याप्‍त समय देने एवं मार्गदर्शन के लिये हम आपके सदा अभारी रहेगें हमारा प्रणाम स्‍वीकार करें आशा है कि हम आपके बताये मार्गपर चलने में सफल होगें आर्शीवाद प्रदान करे

Comment by Akhand Gahmari on April 20, 2014 at 11:35am

आदरणीया गीतिका वेदिका जी रचना पर पर्याप्‍त समय देने एवं मार्गदर्शन के लिये हम आपके सदा अभारी रहेगें हमारा प्रणाम स्‍वीकार करें आशा है कि हम आपके बताये मार्गपर चलने में सफल होगें आर्शीवाद प्रदान करे

Comment by ram shiromani pathak on April 20, 2014 at 10:48am

सुन्दर प्रस्तुति भाई जी  ..........  हार्दिक बधाई आपको 

Comment by बृजेश नीरज on April 20, 2014 at 8:34am

आपका प्रयास सही दिशा में है! अरुण भाई की बात पर ध्यान दें.

गीतिका जी ने सही कहा है! //बतानें, बहानें, जमानें, जलानें// ये सारे शब्द गलत हैं! यहाँ पर 'ने' के ऊपर बिन्दी का प्रयोग सही नहीं है! रुचिकर बात यह कि आपने 'मजारो, अश्‍को' में 'अं' का प्रयोग नहीं किया. सही शब्द ' मजारों' और 'अश्कों' होने चाहिए.

इस सद्प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 5:20pm

आदरणीय अखंड भाई जी मतले ने ही मुझे रोक दिया आगे बढ़ने से मतले की तक्तीअ करने से ही ग़ज़ल ख़ारिज हो जाती है जरा देखिये.

  2   1  2  2  1 2  2   2  1 2 2 2

क्‍या शिकायत करू मैं इस जमानें से

2 1 2   2    2 1 2   2   1 2 2 2

फायदा क्‍या है किसी को बतानें से

बह्र एक समान नहीं है. सुधार करने का पुनः प्रयास करें.

Comment by वेदिका on April 18, 2014 at 1:05am
दूसरे शेअर में वचन सम्बन्धी दोष प्रतीत हो रहा है, गुरुजन से मार्गदर्शन चाहूंगी।
आपने रदीफ़ में जो अं की मात्रा ली है क्या उसका उपयोग उचित है? आपसे मार्गदर्शन की आकांक्षा है।
सुन्दर गजल के लिए बधाई स्वीकारिये!!
Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2014 at 8:20pm

उत्‍साहवर्धन के लिये हम आपके आभारी है आदरणीय भुवन निस्तेज जी

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