For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(कामरूप छंद) नकल न करें-अकल लगायें -अखिलेशकृष्ण श्रीवास्तव

(1)

अंग्रेजियत का, दंभ भरते, क्या दिये संस्कार।

रावण बनें कुछ, कंस भी हैं, पूतना भरमार ॥

नारी सुरक्षा, देश रक्षा, विफल है सरकार।

हैं बलात्कारी, आततायी,  व्याप्त भ्रष्टाचार ॥

              

(2)

नेता लफंगे, संग चमचे, जब पधारे गाँव।

वो गिड़गिड़ायें, वोट माँगें, पकड़ सब के पाँव॥

जीते अगर तो, भूल से भी, दिखें न बदमाश।

मंत्री बने तो, देश का फिर, करें सत्यानाश॥

*संशोधित 

########################

(मौलिक व अप्रकाशित)

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव     

धमतरी (छत्तीसगढ़),  

Views: 784

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on April 6, 2014 at 12:45pm

नेता लफंगे, संग चमचे, आय हमरे गाँव।

वो गिड़गिड़ायें, वोट माँगें, पकड़ सब के पाँव॥

जीते कहीं तो, भूल से भी, दिखें न बदमाश।

मंत्री बने तो, देश का फिर, करें सत्यानाश॥.....क्या करें....जाएँ तो जाएँ कहाँ.....बात ये हुई कि खरबूजा पर छूरी चले या छूरी गिरे खरबूजे पर....सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 6, 2014 at 11:29am

आदरणीय अखिलेश जी ,

मेरे कहे को आपने उत्साहपूर्वक मान दिया मैं आपके प्रति आभारी हूँ...

बिलकुल सही 'यदि' की जगह अगर ही होना चाहिए..

सादर.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 6, 2014 at 9:52am

आदरणीय श्याम भाई

रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 6, 2014 at 9:49am

आदरणीया प्राचीजी,

प्रथम प्रयास की प्रशंसा आपने हृदय से की और वह भी  विस्तृत टिप्पणी के साथ इसके  लिए हार्दिक धन्यवाद ।

आपके सुझाव उचित हैं तदनुसार संशोधन हेतु अनुरोध किया है , कृपया आप भी देख लीजिए।

यदि लिखने से एक मात्रा कम हो जाएगी उसकी जगह"अगर" ठीक रहेगा ।

....... सादर  

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 6, 2014 at 9:37am

आदरणीय एडमिन महोदय,

कामरूप छंद में निम्न संशोधन की कृपा करें

दंभ करते        को.......  दंभ भरते

और भ्रष्टाचार     को....... व्याप्त भ्रष्टाचार

आय हमरे गाँव   को......  जब पधारे गाँव

जीते कहीं तो     को.....  जीते अगर तो

करने की कृपा करें.... धन्यवाद          


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 5, 2014 at 10:19pm

कामरूप छंद पर बहुत ही सार्थक सफल प्रयास हुआ है आदरणीय अखिलेश जी 

अंग्रेजियत का, दंभ करते, क्या दिये संस्कार।..............दंभ करते को दंभ भरते करना चाहिए न!

रावण बनें कुछ, कंस भी हैं, पूतना भरमार ॥

नारी सुरक्षा, देश रक्षा, विफल है सरकार।

हैं बलात्कारी, आततायी,  और भ्रष्टाचार ॥.............यहाँ 'और भ्रष्टाचार' कुछ अटपटा सा लगरहा है क्योंकि पहले दोनों शब्द विशेषणों की तरह प्रयुक्त हुए हैं और यह उसी लय में संज्ञा है....यदि और भ्रष्टाचार को 'व्याप्त भ्रष्टाचार' करें तो संज्ञा को आधार मिल रहा है....शायद सहमत हों !

नेता लफंगे, संग चमचे, आय हमरे गाँव।.....................'आय हमरे' इस आरोपित आंचलिकता की क्या विवशता थी आदरणीय? ..इसे ऐसे कीजिये तो ....... जब पधारें गाँव 

वो गिड़गिड़ायें, वोट माँगें, पकड़ सब के पाँव॥

जीते कहीं तो, भूल से भी, दिखें न बदमाश।...............जीतें कहीं तो , में कथ्य अस्पष्ट लग रहा है....जीतें यदि तो करें तो कैसा रहे?

मंत्री बने तो, देश का फिर, करें सत्यानाश॥

सामयिक कथ्य को छंदबद्ध करता बहुत ही सार्थक प्रयास हुआ है आदरणीय जिस पर मन मुग्ध भी है और आश्वस्त भी..

बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय 

Comment by Shyam Narain Verma on April 5, 2014 at 4:19pm
सुंदर भाव लिए, उत्तम रचना के लिए बधाई ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
11 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service