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इन्दु अपने मंडल की पेंशन प्रमुख थी, किसी भी बुजुर्ग महिला या बहन को पेंशन लगवानी होती तो झट उससे संपर्क करतीं ....

अपने मोहल्ले की अपनी कॉलोनी की सभी महिलाओं की चाहे वो वृद्ध हो, विधवा हो या तलाकशुदा हो उसने बिना किसी अड़चन के पेंशन लगवा दी थी.

समय ने करवट ली, उसके पति का आकस्मिक देहांत हो गया ...

कुछ समय बीत जाने  पर उसकी एक ख़ास सहेली ने उसे सुझाव दिया ...

"भाभी आप ने पेंशन के लिए अपना फॉर्म भरवाया ?"

थोड़ा चुप रहकर फिर कहा ..

"यह तो सरकार दे रही है लेने में क्या हर्ज है ?"

इंदु मूक खड़ी थी ...वो उसको कोई जवाब नहीं दे पाई थी जबकि उसने कुछ गलत नहीं कहा था पर ना जाने क्यों उसे चुभ सी गई थी यह बात और उसके दिल से हूक सी उठी थी ...

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Meena Pathak on March 4, 2014 at 10:02am
Sundar laghukatha .. Badhai
Comment by Sarita Bhatia on March 4, 2014 at 9:31am

आदरणीया वंदना जी आपकी उत्साहित टिप्पिनी से विश्वास बढ़ा है 

Comment by Sarita Bhatia on March 4, 2014 at 9:30am

शुक्रिया अन्नपूर्णा जी 

Comment by Sarita Bhatia on March 4, 2014 at 9:30am

आदरणीय मनोज जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on March 4, 2014 at 9:29am

आदरणीय विवेक आपके सुझाव के लिए शुक्रिया 

Comment by vandana on March 4, 2014 at 7:09am

पीड़ा का अनुभव करना और पीड़ा बाँटना दोनों में अंतर होता है ,यह बात आपने अपनी लघुकथा के माध्यम से अच्छी तरह व्यक्त की ... बहुत २ बधाई  

Comment by annapurna bajpai on March 3, 2014 at 11:20pm

अच्छी लघु कथा है । 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 3, 2014 at 10:22pm

लघुकथा के बारे में बहुत अधिक तो जानता नहीं..फिर भी पढ़ना अच्छा लगा..आपको धन्यवाद आदरणीया सरिता जी..

Comment by Vivek Jha on March 3, 2014 at 9:06pm

कहानी अच्छी है लेकिन दूसरी पंक्ति में "अपने मोहल्ले की अपनी कॉलोनी की सभी महिलाओं की" बार-बार "की" की पुनरावृत्ति से कथा शिल्प में थोड़ी सी बाधा उत्पन्न हुई है, यदि उक्त वाक्य में से  "अपने मोहल्ले की" या "अपनी कालोनी की" में से कोई एक हटा दिया जाय तो शिल्प पक्ष के दमदार होने की संभावना प्रबल दिखती है | प्रणाम | 

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