For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शिव का दृढ़ विश्वास मिले अब (नवगीत) // --सौरभ

उमा-उमा मन की पुलकन है
शिव का दृढ़ विश्वास
मिले अब !

सूक्ष्म तरंगों में
सिहरन की
धार निराली प्राणपगी है  
शैलसुता तब
क्लिष्ट मौन थी  
आज भाव से
आर्द्र लगी है

हल्दी-कुंकुम-अक्षत-रोरी
तन छू लें
अहिवात निभे अब !!

तत्सम शब्द भले लगते थे
अब हर देसज
भाव मोहता
मौन उपटता
धान हुआ तो
अंग-छुआ बर्ताव सोहता

मंत्र-गान से
अभिसिंचित कर.. !
सृजन-भाव सत्कार लगे अब !!

जब काया ने
सृष्टि-चितेरा
हो जाना
स्वीकार किया है
उत्सवधर्मी परंपराओं
का शाश्वत व्यवहार
जिया है

कुसुम-रंग-अनुभाव प्रखर हैं 
शिव-गण का
उत्पात रुचे अब !!

**************

-सौरभ

**************

(मौलिक और अप्रकशित)

शैलसुता - उमा का एक रूप ; अहिवात - सुहाग ; अनभाव - गुण  

Views: 1621

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 3, 2014 at 2:12pm

आदरणीय सौरभ भाईजी

शक्ति,  शिव से मिलने आतुर हैं । घोर तपस्या के बाद प्रेम निवेदन स्वीकार होने और विवाह की तैयारियों  से मन पुलकित है, संकोच और लज्जा के भाव भी हैं, देवी की तरह नहीं एक सामान्य नारी की तरह।                                                                     शिव-गण का 
उत्पात रुचे अब !!                                                                                                                                         सच है ऐसे अवसरों बच्चों के हुडदंग भी अच्छे लगते हैं

चुन-चुनकर शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है इस लयात्मक  नवगीत में । जब किसी की प्रतिक्रिया भी नहीं आई थी , सरसरी तौर पर पढ़कर आगे बढ़ गया था , कुछ सिर के ऊपर से भी निकल गया। हृदय से बधाई इस श्रेष्ठ कृति पर ।                                                    सभी पाठकों की प्रतिक्रिया पढ़कर और भी आनंद आया।

शायद यही कुछ भाव सीताजी के मन भी उठे हों श्रीराम को पहली बार देखकर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2014 at 11:12pm

भाई आशीष अन्चिन्हारजी, नवगीत को अनुमोदन हेतु आपका हार्दिक आभार  .. . तथ्या जानकारी सार्थक है.

शुभ-शुभ

Comment by ASHISH ANCHINHAR on March 25, 2014 at 1:09pm

क्षेपक-१

 

हम कितने ही महान विद्वान क्यों ना हो, डाक्टर की पर्ची देखते ही मगज घूम जाता है। मगर हमारी हिम्मत नहीं होती कहने की, कि डाक्टर बाबू जरा पर्ची सरल शब्दों मे लिख दो।

 

क्षेपक-२

 

जरा सोचिये कि अगर सरल और हल्का ही सही है तो फिर हम हलुआ, पूड़ी मलाइ जैसे गरिष्ठ भोजन क्यों करते है।

 

क्षेपक-३

 

अब मेरे इन पंक्तियों का सौरभजी से कोई संबंध नहीं है इसके लिये मुझे गैर-जिम्मेदार मान लिजीए।

 

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

उमा-उमा मन की पुलकन है

 

इस पंक्तिमे उमा शब्द को दोहराया गया है। क्यों?

 

 

मेरे विचार से पहला उमा "निषेधवाची" है और दूसरा "संज्ञावाची"। अर्थात "नहीं" "उमा" की मन की पुलकन बन गई है, मगर क्यों?

 

कथा है कि पार्वती के कठिन व्रत से घबड़ा कर शंकर दौड़े आये और पार्वती को मना किया कि बस अब और कठिन व्रत की जरूरत नहीं है। "उ-मा" अर्थात " हे-नहीं"| यहीं से पार्वती को "उमा" नाम मिला है। क्या किसी अन्य स्त्री को इस तरह के निषेध का सौभाग्य मिला है।

 

इस नवगीत की अन्य पंक्तियां तो बस इसी भाव को पुष्ट कर रही है।

 

बधाइ सौरभजी को अलंकारिक रचना केलिए।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 3, 2014 at 1:37am

गणेशभाईजी, आपने इस नवगीत मूल स्वर को पहचाना और मुख्य शब्द को रेखांकित किया यह आपकी काव्य-संवेदनशीलता को साझा करता है.
हार्दिक धन्यवाद भाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 3, 2014 at 1:34am

सादर धन्यवाद आदरणीय प्रदीपजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 3, 2014 at 1:34am

भाई अरुण श्री, आपने अपनी प्रतिक्रिया में जिन इंगितों के सहारे प्रस्तुत नवगीत को ऊँचाई दी है उसके लिए हार्दिक धन्यवाद.
आपके मौन निवेदन से रोमांच हो आया है.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 3, 2014 at 1:31am

आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रजी, आपको मेरा प्रयासकर्म रुचिकर लगा, इसके लिए सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 3, 2014 at 1:30am

आदरणीया सरिताजी, प्रयास सार्थक लगा इसके लिए आपको सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 3, 2014 at 1:28am

आदरणीय राजेश मृदुजी, आपने जिस उत्फुल्लता से प्रस्तुत रचना को मान दिया है वह आपकी वैचारिक और मानवीय हाव-हाव की सूक्ष्म परख को साझा करता है.
हार्दिक आभार

आपको जो और जिस शब्द-युग्म पर अटकाव लगा वह हमारे-आपके क्षेत्र भाषायी उच्चारण के कारण मात्र है. आप उत्सवधर्मी परम्पराओं को उत् सव धर् मी परम् परा ओं  की तरह उचारण करें तो यह अटकाव कत्तई नहीं होगा. जिस तरह से अक्षरों के द्विकल और त्रिकल बन रहे हैं वह मात्रिकता को संयत ढंग से संतुष्ट करते हुए है.
वस्तुतः हम अपने आंचलिक उच्चारण में परम्पराओं को प्रम्प्राओं कहने के आदी हैं.


पुनः इस गीत पर आपसे प्रशंसा पाना मेरे रचनाकर्म के लिए उत्साह का कारण है.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 3, 2014 at 1:26am

प्रस्तुत गीत पर समय देने के लिए हार्दिक धन्यवाद केवल प्रसादजी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
4 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service