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212/ 212/ 212/ 212

 

पास लाई हमें जाने कब दूरियाँ

ये लगे है कि मिट जाये अब दूरियाँ

 

चाँदनी भी है कंदील भी हाथ में

फिर भी क्यूँ रौशनी से अजब दूरियाँ

                                                                  

याद आती रहे आपको मेरी तो

मैं कहूँ है बहुत मुस्तहब दूरियाँ

 

मुझको शिकवा न तुझको शिकायत कोई

दरमियाँ क्यूँ ये फिर बेसबब दूरियाँ

 

मेरी अफ़्सुर्दगी को बढ़ाये बहुत                  अफ़्सुर्दगी = उदासी

इक नये दर्द से रोज़ो-शब दूरियाँ

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by annapurna bajpai on January 28, 2014 at 11:49pm

बहुत खूबसूरत   गजल के लिए आपको बहूत बधाई आ0 शिजू जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 28, 2014 at 11:28pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2014 at 6:42pm

आदरणीय शिज्जू भाई , वाह वा !! बहुत कठिन कफिया - रदीफ को आपने सफलता से निभाया है , बहुत सुन्दर !! इस ग़ज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

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