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चिलचिलाती धूप में तुम याद आये

 

चिलचिलाती धूप में तुम याद आये 

मधु गीति सं. १५९६ , रचना दि. ३१ दिसम्वर, २०१०)

 

चिलचिलाती धूप में तुम याद आये, झिलमिलाती रोशनी में नजर आये; 

किलकिलाती दुपहरी में दिल लुभाए, तिलमिलाती रूह को चुपके से भाये. 

 

खिलखिलाती हँसी का आलम सजाये, विलखती विरहिन के हृद का राग गाये; 

किलकते शिशु के नयन में ज्योति भरके, ठिठुरती मां के हृदय की ठण्ड ढाये.

थके चलते यात्री पद की थकन सोखे, सहमते युव हृदय में विश्वास फूँके;

झिझकते शंकित उरों में सुमन फुरके, तरंगित कर हर हृदय को फुरा बैठे. 

 

पुलकती पृथ्वी भरी निज प्राण से तुम, झुलसती सृष्टि भरी निज फाग से तुम; 

थिरकती संस्कृति संभाली राग देकर, मचलती माया संवारी त्राण देकर.

टिमटिमाती रोशनी को जगमगाये, सकपकाती वृद्ध आँखों को जगाये; 

चिपचिपाते प्रेम को शाश्वत बनाये, मुस्कराते 'मधु' हृदय को गोद लाये. 

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 2, 2011 at 7:22pm
श्रृंगार रस से परिपूर्ण अच्छी रचना | बधाई आदरणीय गोपाल जी |

कृपया ध्यान दे...

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