For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे खोये हुये लम्हात के ग़म को,

हकीकत के सीने में दफ़्न,

कुछ इच्छाओं की

उन धुँधली यादों को,

मेरे सपनों की लाशों को,

अब तक ढो रहा हूँ मैं…

 

कई दफे

ज़िन्दगी करीब से गुज़री,

मगर,

मैं ही जी न पाया..

आज मुझे लगता है

मैंने बहुत कुछ खो दिया,

पहले जो खोया है..

उसे याद कर,

और फिर,

उन्हीं यादों में खोकर,

 

एक लम्बा सफर तय किया,

मगर,

आज मुझे लगा

कि मैं वहीं हूँ!

वहीं हूँ जहाँ से चला था……

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 876

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2014 at 7:25pm

आदरणीय श्याम नारायण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2014 at 7:23pm

आदरणीय विजिश जी रचना की सराहना के लिये आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2014 at 7:22pm

आदरणीय नीरज नीर जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 4, 2014 at 6:04pm

भाई शिज्जु जी बेहद सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by sujeet kumar jalaj on January 4, 2014 at 11:52am

कई दफे

ज़िन्दगी करीब से गुज़री,

मगर,

मैं ही जी न पाया.     सबसे बेहतरीन पंक्ति । बधाई…

Comment by vandana on January 4, 2014 at 5:27am

सच कहा आदरणीय शिज्जू जी बहुत बार आदमी यह महसूस करता है कि इतनी भागदौड़ की और प्रगति नाममात्र को भी नहीं हुई लेकिन कुछ देर रुक कर फिर उसी भागदौड़ में लग जाता है 

Comment by Neeraj Nishchal on January 3, 2014 at 11:24pm

मेरे एक पडोसी हैं दो शादी की हैं उन्होंने एक रोज मुझे कहने लगे शादी का लड्डू जो खाये वो पछताए जो न खाये वो भी पछताए
मैंने कहा वो तो ठीक है पर ये क्या दो बार खाकर दो बार पछताने वाली कौन सी बात हुयी एक बार खा लिए पछता लिए बहुत हुआ
आदमी तो रोज रोज वही गलतियां करता है नयी गलतियां करे तो भी ठीक
जीवन एक पाठशाला है यहाँ भी हम एक कक्षा में उत्तीर्ण होकर अगली कक्षा में प्रवेश पाते हैं प्रौढ़ होते हैं आगे बढ़ते हैं
पर आदमी है एक ही कक्षा को बार बार ढोये जा रहा है वो रोज रोज वही काम करता है
और फिर कहता है आज भी वही पर हूँ तो किसकी कृपा से अपनी ही कृपा से
जब भीतर की समझ गहरी हो जाती है तो आदमी आगे बढ़ता है और और शांत होता जाता है सुलझता जाता है
और आनंदित होता जाता है सारे द्वन्द समाप्त सारे उलझाव ख़तम हुए सारे झगडे फसाद ख़तम हुए समझ लिया पूरी तरह जीवन को
तो पहुंचे आप मंज़िल पर ,
सादर आदरणीय शिज्जू भाई ।

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 3, 2014 at 9:32pm

आदरणीय शिज्जू भाई , रचना पर मेरी हार्दिक बधाई ॥

Comment by ajay sharma on January 3, 2014 at 9:26pm

bahut hi sanzeeda ahsasaat hai .......

Comment by Neeraj Nishchal on January 3, 2014 at 8:56pm

मैंने सुना है चार मित्रों ने एक रात खूब शराब पी और रात में मौज़ मस्ती के
लिए सोचा क्यों ना नौका बिहार किया जाए फिर सभी पहुँच गए नौका बिहार को
सभी ने एक एक नाव ली और रात भर नाव चलायी सुबह जब उषा की पहली किरण के साथ
हवा के ठन्डे झोंको ने उन्हें छुआ तो वो ज़रा होश में आये और सोचा रात भर नाव चलायी है
और काफी दूर पहुँच गए होंगे पर उन्होंने देखा वो तो कहीं नही पहुँचे उन्होंने जहाँ से शुरू किया था
वो तो वही पर हैं वो अपनी नाव किनारे बंधी रस्सी से छुड़ाना ही भूल गए थे वो बेहोश थे
और हर आदमी बेहोश है आज अगर हर बुज़ुर्ग से पूछो तो वो अपने अतीत में ही खोया है
वो कहता है मै नाव घुमाता रहा हूँ जीवन में बहुत भाग दौड़ कि है बड़े संघर्ष किये हैं पर वो जानता
है वो कहीं पहुंचा नही है आदरणीय वीनस जी लिखते हैं

ज़िंदगी से खेलने वालों जरा यह कीजिए
ढूढिए ऐसा कोई जो आखिरश हारा न हो

इंसान कि तो हालत ये है कि वो एक गोले में चल रहा है और कोई कहे कि आप कहीं पहुंचोगे नही तो वो जल्दी
जल्दी चलने लगे कि अब पहुंचूंगा कोई कहे नही आप फिर भी कहीं नही पहुंचोगे तो वो दौड़ने लगे कि देखो अब तो
पहुंचूंगा पर वो पागल है वो तो एक चक्र में यात्रा कर रहा है आप अगर अपना विश्लेषण करें तो आप समझ पाएंगे
रोज रोज वही सुख वही दुःख ज़िन्दगी में नया क्या है

बहार हाल कविता बहुत खूबसूरत है और बहुत बहुत बधाई प्रेषित है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service