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गीत (रिश्ते नाते हारे)

गीत (रिश्ते नाते हारे)

गया सवेरा, ख़त्म दोपहर, ढली सुनहरी शाम,   

आँखें ताक रहीं शून्य, और मुँह में लगा विराम,

गीत, गज़ल ख़ामोश खड़े औ कविता हुई उदास,

जब सबने छोड़ा साथ,

आँसू की हुई बरसात।

 

मैंने भी अब मान लिया है जग की रीत पुरानी जी,

झूठ फले – फूले जीवन में, सच की हो कुर्बानी जी,

एक जिगर का टुकड़ा बनता फिर गर्दन की फाँस,

जब सबने छोड़ा साथ,

आँसू की हुई बरसात।

 

जीवन के इस बीच भँवर में ना डूबें, ना उतरें हम,

फूल नहीं थे, उनके दिल पर काँटे बन कर उभरे हम,

काँटे रक्षा करें फूल की, क्यों न उन्हें आभास,

जब सबने छोड़ा साथ,

आँसू की हुई बरसात।

 

शीत गई चंदा की अब तो, जल में अब अंगारे हैं,

चलन हुआ रुपयों का ऐसा, रिश्ते – नाते हारे हैं,

संग जानकी, राम भटकते, हुआ वही बनवास,

जब सबने छोड़ा साथ,

आँसू की हुई बरसात।

----------------------------------------- सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Sushil.Joshi on October 28, 2013 at 5:01am

आपकी स्नेहिल टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्वाद आपका आ0 विशाल भाई....

Comment by Sushil.Joshi on October 28, 2013 at 4:59am

उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार आ0 गिरिराज जी....

Comment by Sushil.Joshi on October 28, 2013 at 4:58am

अनुमोदन के लिए बहुत बहुत आभार आपका आ0 लक्ष्मण प्रसाद जी......

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 9:55pm

आज रिश्तों में बढ़ रहे छल कपट, खत्म होती आत्मीयता.... खोखलापन....नकलीपन से उपजी निराशा पर आधारित एक बहुत ही सार्थक एवं सराहनीय गीत के लिये हृदय से बधाई स्वीकारें भाई !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 27, 2013 at 7:06pm

आदरणीय सुशील भाई , लाजवाब गीत  रचना के लिये आपको बहुत बधाई !!!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 27, 2013 at 6:58pm

जीवन के इस बीच भँवर में ना डूबें, ना उतरें हम,

फूल नहीं थे, उनके दिल पर काँटे बन कर उभरे हम |

शीत गई चंदा की अब तो, जल में अब अंगारे हैं,

चलन हुआ रुपयों का ऐसा, रिश्ते – नाते हारे हैं |------बहुत खूब | बधाई श्री शुशील जोशी जी 

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