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दिले नादान आ जाना [ गजल ]

दिले नादाँ  पिया आना
दिले महफिल सजा जाना /

दिलों के जख्म सीले हैं
उन्हें मरहम लगा जाना /


सनम यह बेरुखी क्यों है ?
जरा आकर बता जाना /

सनम मुझसे खफा क्यों हो ?
वो हाले दिल सुना जाना /

नहीं तकरार करना अब
करें इज़हार आ जाना /

अभी मजबूरियां क्या हैं ?
कहे सरिता बता जाना //

..................................

    मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on October 16, 2013 at 1:30pm

आदरणीया सरिता जी प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें बाकी आदरणीय बागी भ्राताश्री जी ने कह दिया हैं उनकी बातों पर ध्यान दें.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2013 at 11:39am

आदरणीया सरिता जी, काफिया,रदीफ़, बहर को निभा लेने पर बहुत बहुत बधाई । किन्तु गज़लियत है कहाँ, कहन बेहद कमजोर जिससे सभी शेर भर्ती के लगें, मेरा उद्देश्य हतोत्साहित करना कतई न समझा जाय, किन्तु वाकई कहन पर आपको काम करने की जरुरत है । शेर ऐसा हो कि पढ़ने वाले को लगे कि वाह क्या बात कही गई है , एकदम से नई बात । 

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 8:22pm

भावों का सुंदर संप्रेषण है आदरणीया सरिता जी.... बधाई....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 15, 2013 at 5:17pm

आदरणीय सरिता जी छोटी बह्र मे सुन्दर गज़ल कही है बधाई !!!

लेकिन मतले मे ---- नादान दिल मे हर्फे इजाफ़त लगाने के बाद दिले नादाँ हो जाता है ( ऐसा मुझे याद आता है )अगर ऐसा है तो  मिसरा बेबह्र हो जायेगा  !!!!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 15, 2013 at 3:48pm

सुंदर ग़ज़ल के लिए मेरी तरफ से हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by शकील समर on October 15, 2013 at 3:16pm

आदरणीया Sarita Bhatia जी

छोटी बह्र पर इस खूबसूरत गजल के लिए दिली मुबारकबाद स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

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