For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वह माटी  थी पर नहीं थी वह  ...जिसे कुम्हार ने माजा चाक पे चढ़ाया, गढा, चमकाया बाजार  में बिठाया ... वह तो किस्मत की धनी थी पर वह ?  वह तो सिर्फ उसके बगिया की माटी  थी  उसके पैरों तले गाहे बगाहे आ जाती  ... कुचली जाती रही .. टूटती रही, खोदी जाती रही, तोडी जाती रही ..... और बदले में रंगबिरंगे फूलों से फलों से  अपनी हरियाली को सजा कर बगिया को महकाती रही .... यही तो था  उन् दोनों के अपने अपने हिस्से का आसमान .. लेकिन उन् दोनों के लिए एक आसमान से इतर एक दूसरा आसमान किसी बंद दरवाजे से बाहर भीतर खुलता था   .. एक वह जिसकी  चाहत थी टूट फूट कर बगिया की मिट्टी हो जाने की .. कैसे तोड़ता कुम्हार अपने शिल्प को जिसे गढा था उसने पुरजोर कोशिशों से अपनी रूह रख कर उस माटी में    .. और एक वह जो बगिया से बाहर  बाजार की चमक में दमकना चाहती थी एक आकार ले कर चाक में चढ़ना चाहती थी ...  कुन्हार कैसे करता उस माटी को बाजार में जिसकी खुशबू में वह जीता था ... आखिर कुम्हार की चाक बंद हो गयी, बगिया की देखभाल भी बंद हो गयी .. वह  कुम्हार दोनों के लिए न्याय गढते गढते मिट गया उन् दोनों पर ... और जल्द ही एक दिन खुद माटी हो गया ....  ...  उस दिन देखा था लोगो ने एक आसमान को टूट कर गिरते हुए ... उसके मेरे अभिप्राय में बिफरती माटी गुमनामी के अंधेरों में ख़ामोशी की तहों में सिमट गयी सदा के लिए ..........  ~nutan~

मौलिक अप्रकाशित 

Views: 753

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2013 at 10:53pm

वाह ! बहुत सुन्दर !

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:23pm

बहुत सुन्दर भाव ! शुभकामनाये 

Comment by Meena Pathak on October 5, 2013 at 7:51pm

आहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. बधाई आ० नूतन जी 

Comment by रविकर on October 5, 2013 at 5:59pm

गहन भाव-
आभार आदरेया-

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on October 5, 2013 at 4:49pm

बहुत  बहुत धन्यवाद आदरणीय माथुर जी और जोशी जी, मेरी इस रचना तक आने के लिए .. और खुशी हुई  कि यह रचना आपको अच्छी लगी .. 

Comment by Sushil.Joshi on October 5, 2013 at 2:13pm

बहुत सुंदर एवं भावनात्मक रचना.... हार्दिक बधाई हो आपको आदरणीया नूतन जी...

Comment by D P Mathur on October 5, 2013 at 11:59am

कैसे तोड़ता कुम्हार अपने शिल्प को जिसे गढा था उसने पुरजोर कोशिशों से अपनी रूह रख कर उस माटी में    .. 

आदरणीया डॉ नूतन जी नमस्कार, संवेदनाओं की गहराई में डूब कर लिखी रचना के लिए आपको बधाई । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"तौर-ए-इमदाद ये भला तो नहीं  शहर भर में अब इतना गा तो नहीं     मर्ज़ क्या है समझ…"
12 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का मतला भरपूर हुआ है। अन्य शेर आयोजन के बाद संवारे जाने की मांग कर रहे…"
37 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ दयाराम मैठानी जी। आपके द्वारा इंगित मिसरा ऐसे ही बोला जाता है अतः मैं इसे यथावत रख रहा…"
41 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. अजय जी"
43 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"शब में तारों से जगमगाते फ़लक मेरे पुरखों के नक़्श-ए-पा तो नहीं  लगता ईमान सा ही कुछ शायद गिर…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त दिया मतले के सानी को उला से साथ कहने की कोशिश…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदमी दिल का वह बुरा तो नहीं सिर्फ इससे  खुदा  हुआ  तो नहीं।। (पर जमाने से कुछ…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ, मेदानी जी, कृपया देखेंकि आपके मतल'अ में स्वर ' उका' की क़ैद हो गयी है, अत:…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल में कुछ दोष आदरणीय अजय गुप्ता जी नें अपनी टिप्पणी में बताये। उन्हे ठीक कर ग़ज़ल पुन: पोस्ट कर…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, आपकी ग़ज़ल का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूँ। यह ग़ज़ल भी प्रशंसनीय है किंतु दूसरे…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी, पोस्ट पर आने और सुझाव देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। बशर शब्द का प्रयोग…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्ते ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई। अच्छे भाव और शब्दों से सजे अशआर हैं। पर यह भी है कि…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service