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स्वच्छ गगन मे - कविता

स्वच्छ गगन मे

सुवर्ण सी धूप

भोर की किरण ने

आ जगाया ।

अर्ध उन्मीलित नेत्र

उनींदा  मानस

आलस्य पूरित

यह तन मन

पंछियों ने राग सुनाया ।  

कामिनी सी कमनीय

सौंदर्य की प्रतिमा

नैसर्गिक छटा

फैली चहुं ओर

मुसकाते सुमन

झूमते  तरुवर

नव जोश जगाया ।

हुआ प्रफुल्लित ये मन

तोड़ कर मंथर बंधन

मानो  रोली कुमकुम

आ छिड़काया ।............. अन्नपूर्णा बाजपेई 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

 

 

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Comment

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Comment by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 7:42am

प्रकृति की सुंदर छटा बिखेरी है आपने आदरणीया अन्नपूर्णा जी.... बधाई....

Comment by Meena Pathak on October 4, 2013 at 1:44am

बहुत सुन्दर रचना आ० अन्नपूर्णा जी .. बधाई आप को 

Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 9:05pm

आदरणीय बैद्य नाथ सारथी जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 9:03pm

आदरणीय रविकर जी आपकी टिप्पणी ने मनोबल को दूना कर दिया , आपका ह्रदय तल से आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 9:02pm

आदरणीय भण्डारी जी आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे , आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 9:01pm

आदरणीय अनुराग जी आपका हार्दिक आभार टिप्पणी के रूप मे अपना स्नेह बनाए रखिए । 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 3, 2013 at 8:10pm

:
अर्ध उन्मीलित नेत्र

उनींदा  मानस

आलस्य पूरित

यह तन मन

पंछियों ने राग सुनाया.......गज़ब , क्या बात है !...नमन स्वीकारें ....बहुत बहुत बधाई :)

Comment by रविकर on October 3, 2013 at 7:22pm

रचा सुबह के दृश्य पर, बेसुबहा उत्कृष्ट |
शिल्प सुगढ़ दीखे बहन, भरती भाव अभीष्ट ||


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2013 at 6:07pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , प्रकृति का बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने !!! सुन्दर रचना के लिये बधाई !!

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 3, 2013 at 6:00pm

सुन्दर रचना ! हार्दिक बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

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