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जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो .......(गज़ल) //डॉ० प्राची

१२२२...१२२२ 

नज़र दर पर झुका लूँ तो 

मुहब्बत आज़मा लूँ तो 

तेरी नज़रों में चाहत का 

समन्दर मैं भी पा लूँ तो 

बदल डालूँ मुकद्दर भी 

अगर खतरा उठा लूँ तो 

सियह आरेख हाथों का 

तेरे रंग में छुपा लूँ तो 

तेरी गुम सी हर इक आहट 

जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो 

तुम्हारे संग जी लूँ मैं  

अगर कुछ पल चुरा लूँ तो 

न कर मद्धम सी भी हलचल 

मैं साँसों को सम्हालूँ तो 

तुम्हें ये राज क्या कहना 

इसे दिल में छुपा लूँ तो 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 13, 2013 at 1:30pm

 आ. प्राचीजी , बधाई । " तो " की जगह " मैं " रखकर और कुछ शब्द बदलकर  देखा तो गजल और अच्छी लगी। 

Comment by बृजेश नीरज on September 13, 2013 at 11:36am

आदरणीया प्राची जी, छोटी बहर में बहुत ही सुन्दर गज़ल। आपका हार्दिक बधाई!
मेरी समझ से यदि एक ही तरह की भाषा का रचना में प्रयोग किया जाए तो अच्छा रहता है। उर्दू के शब्दों के साथ आरेख जैसे शुद्ध हिन्दी के शब्दों का प्रयोग रचना के गठन को बिगाड़ता ही है।
यह मेरी अपनी सोच भर है।
सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 11:18am

आदरणीया प्राची जी , बहुत प्यारी गज़ल कही है , हर शेर प्यारे है !! हार्दिक बधाई !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 13, 2013 at 11:10am

नज़र दर पर झुका लूँ तो 

तुझे अपना बना लूँ तो ... बेहतरीन मतला

तेरी नज़रों में चाहत का 

समन्दर मैं भी पा लूँ तो ... वाह वाह

बदल डालूँ मुकद्दर भी 

जो ये खतरा उठा लूँ तो .. आय हाय

सियाह आरेख हाथों का 

तेरे रँग में छुपा लूँ तो ... लाजवाब लाजवाब

तेरी गुम सी भी हर आहट 

जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो ... जबरदस्त

तुम्हारे संग जीना है 

जो कुछ लम्हें चुरा लूँ तो .. वाह वाह

न कर मद्धम सी भी हलचल 

मैं साँसों को सम्हालूँ तो ... अहा! अहा! अहा! हृदयस्पर्शी

तुम्हें ये राज क्या कहना 

इसे दिल में छुपा लूँ तो... लाजवाब

वाह दीदी वाह छोटी बहर का क्या खूबसूरत जादू चलाया है आपने मजा आ गया. दिल से ढेरों दाद कुबूल फरमाएं. कई बार पढ़ गया और मजा हर बार बढ़कर ही मिला.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 13, 2013 at 10:57am

//नज़र दर पर झुका लूँ तो 
तुझे अपना बना लूँ तो 
तेरी नज़रों में चाहत का 
समन्दर मैं भी पा लूँ तो// बहुत खूबसूरत अशआर हैं वाह

//सियाह आरेख हाथों का 
तेरे रँग में छुपा लूँ तो// इस शेर की तक्तीअ एक बार फिर करके देखें 

//तेरी गुम सी भी हर आहट 
जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो // 

आदरणीया डॉ प्राची आपके इस खूबसूरत शेर के साथ छेड़छाड़ की गुस्ताखी कर रहा हूँ,

तेरी गुम सी हर आहट भी 
जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो


//तुम्हारे संग जीना है 
जो कुछ लम्हें चुरा लूँ तो// बेहद मासूमियत भरा आग्रह है वाह

//न कर मद्धम सी भी हलचल 
मैं साँसों को सम्हालूँ तो 
तुम्हें ये राज क्या कहना 
इसे दिल में छुपा लूँ तो//

आदरणीया डॉ प्राची आपकी इस ग़ज़ल के हर शेर से यूँ लगता है जैसे कोई मद्धम संगीत सुनाई दे रहा हो, अपनी इस खूबसूरत रचना के लिये दाद कुबूल फरमायें 

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