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रहीम - यार! अपन लोग की लाइफ का कोई गेरन्टी नहीं।
राम - ये सेठ लोग अक्खी दुनिया के हिस्से की गेरन्टी खुद ही ले लेना चाहता है।
-हाँ यार! देख कल अपने सेठ की गाड़ी क्या ठुकी कि बीमा का केस दायर कर दिया। अब साल्ला 4-5 लाख तो मिल ही जायेगा उसको।
-लेकिन तुझे मालूम है? कल अपन के मोहल्ले में अश्फाक मोची का इकलौता लड़का, बेचारा भूख से तड़प कर मर गया।
-काश अपन लोग के भूख भी का बीमा होता यार, तो भूख लगने या मरने पर कुछ तो मिल जाता!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:15pm
आदरणीय अविनाश बागड़े सर जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:14pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:12pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:10pm
आदरणीया सीमा दीदी जी! रचना पर आपका आशीर्वाद सम्बल स्वरूप है। आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 14, 2013 at 7:05pm
आदरणीय जवाहर लाल जी! रचना की सराहना के लिये आपका आभार। लेकिन आदरणीय मैंने सागर से अपना गागर भर लिया है बस।
शेष आपका आशीर्वाद।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2013 at 10:41am

लघुकथा केलिए बधाइयाँ.

कथा का मर्म भेदक है जिसे आपने पकड़ने औरफिर पाठकों से साझा करने का सफल प्रयास किया है. आपकी यह लघुकथा पूर्व के प्रयासों से बहुत संयत है.

सतत प्रयासरत रहें.

शुभेच्छाएँ

भाई बृजेशजी की बातों से मैं सहमत नहीं हो पा रहा हूँ.

Comment by बृजेश नीरज on August 10, 2013 at 3:29pm

भाई विन्ध्येश्वरी जी आपके इस प्रयास पर आपको बधाई!
वैसे आपकी लघुकथा मुझे वीर छंद जैसी लगी। अतिशयोक्ति की भरमार है। बीमा के चार पांच लाख रूपये, मोची के लड़के का भूख से तड़पकर मरना।
सबसे महत्वपूर्ण बात आप जैसे रचनाकार की कलम से बम्बइया चलताऊ भाषा का प्रयोग अटपटा सा लगा।
सादर!

Comment by Vasundhara pandey on August 9, 2013 at 3:51pm

अति मार्मिक लघु कथा ,, सादर बधाई !

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 9, 2013 at 1:32pm

आ0 विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी जी,   वाह..! एक गंभीर सोच,  अतिसुन्दर विचारणीय कथानक। हार्दिक बधाई स्वीकारें, सर जी।   सादर,

Comment by annapurna bajpai on August 8, 2013 at 11:49pm

आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी बहुत बढ़िया लघु कथा के लिए बधाई ।

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