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सितारों जड़ी चुनरी नित-निश
लहर दिशा महके री।

झांक रही केसर
मुख नारी,
पर्वत ओट लिए
दृग कारी।
काजल रेख दूर
तक पारी,
गाल गुलाल
मुस्कान प्यारी।
अधर बीच बिजली री !

स्वर्ण किरन ने
ली अंगड़ाई,
शबनम करती
चली रूषाई।
कल कल धुन सुन
सरिता मचले,
गिरि से गिर कर
झरना उछले।
बांह बॅधें नहि मछरी !

पानी में केसर
मुख धोए,
हर हर गंगे
बोल सुहाए।
निखरा रूप
सलोना सुन्दर,
जल रक्त वर्ण
आग लगाए।
चिडि़यां चहकी वन री!।

कमल-सरोवर
जन मन भाए,
जल पर पत्ते
धानी छाए।
भ्रमर प्रेम का
राग सुनाए,
मोर मचल कर
नाच दिखाए।
भोर बड़ी चंचल री!।

के0पी0सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 17, 2013 at 7:12pm

आ0 राजेश भाई जी,  आपका स्नेह व सराहना पा कर मुझे बेहद संतुष्टि मिली।  उत्साहवर्धन करने हेतु आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 17, 2013 at 7:06pm

आ0 निकोर सर जी,  आपके स्नेह व उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार।  सादर,

Comment by राजेश 'मृदु' on July 17, 2013 at 5:38pm

मधुरम-मधुरम

Comment by vijay nikore on July 17, 2013 at 1:04pm

बहुत सुंदर भाव हैं, आदरणीय।

 

सादर,

विजय निकोर

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