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क्षणिकाएं (राम शिरोमणि पाठक )

गुजरती नहीं रात
संघर्ष करता रहा नींद से,
जब भी लेता हूँ करवट
चुभने लगते है कांटे
यादों के.//1

*****************************************

बहुत आभारी हूँ आपका 

जिंदा तो छोड़ा पागल बनाकर ही सही//2

*******************************************

दिल बहलाने का सामान 
थोडा बहुत इनाम
बस इतने के लिए क्या?
स्वाभिमान बेच दूँ//3

*******************************************

डर की निद्रा में विलीन 

रात ही रात
सुन्दर स्वप्न भ्रान्ति
पतन ही पतन
दुर्बल मानसिकता से ग्रसित
रात्रि का मोह
रक्त सूख गया क्या?
अरे !उठो लड़ो
ये उत्पीडन का राज्य है//4

********************************************

हे ! ईश्वर
ज़रा सुनिए
दर्शन को व्याकुल
दौड़ते
एक दूसरे को रौंदते हुए
आपके सच्चे भक्त आ रहे है//5

****************************************

दुख के सन्नाटे से

लड़ रहा हूँ
तभी तो
आज फिर अकेला हूँ//6

*************************************

चिपकती आँतों का दर्द झेलता 

भूख से छटपटाता रहा
हाय! मरने के पहले
अंतिम हिचकी भी ना आई//7

**************************************

बेवफा खुद

मुझे बेवफा कहने लगे
बेशर्मी की हद तो देखो
कहने लगे नहीं जीना मुझे
ज़हर दे दो
मैंने हँस के कहा
खुद को निचोड़ लो//8

*****************************************

अपने पराये लगने लगे उन्हें
चलो कोई बात नहीं
अरे !लेकिन ये क्या कर डाला
खुशी से उनके पहलू मे जा बैठे
जिनके हाथो मे ख॑जर था//9

*******************************************

खुद को कोई कब तक बचाए
जब सच खुद ही
कपड़े उतार सामने खड़ा हो//10

********************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

Views: 637

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on July 11, 2013 at 6:49pm

आदरणीय सौरभ जी आपसे ऐसी टिपण्णी की अपेक्षा नहीं थी की आप  ऐसा कुछ कहेंगे  ///मेरा लिखना सफल हुआ ///यह  सब आप गुरुजनों का आशीर्वाद ही है ///प्रणाम सहित बहुत बहुत आभार //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on July 11, 2013 at 6:41pm

हार्दिक आभार आदरणीय डी पी माथुर जी  //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on July 11, 2013 at 6:40pm

हार्दिक आभार आदरणीया गीतिका दीदी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on July 11, 2013 at 6:39pm

हार्दिक आभार भाई आशीष जी //

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2013 at 4:31pm

bahut sundar bhaai raam ji ...........badhaai ho

Comment by राजेश 'मृदु' on July 11, 2013 at 4:29pm

क्षणिकाएं का शिल्‍प मैं नहीं समझता पर आपने जो लिखा है अच्‍छा लिखा है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 4:10pm

वाह !!

भाई राम शिरोमणि जी की प्रस्तुत प्रौढ़ भाव-क्षणिकाएँ चकित तो करती हैं, आश्वस्त भी करती हैं कि यदि यह रचनाकार संयत रचनाकर्म करे तो सहज संप्रेषणीयता में इसका सानी नहीं.

भाई रामशिरोमणि मानों डोरमेण्ट डाइनामाइट सदृश हैं जो भाव-प्राक्ट्य के प्रवहमान क्रम में आ जायँ तो पाठकों को अपनी रचनाप्रक्रिया से निश्शब्द कर दें. 

शुभकामनाएँ

Comment by D P Mathur on July 11, 2013 at 8:56am

बेवफा खुद

मुझे बेवफा कहने लगे 
बेशर्मी की हद तो देखो 
कहने लगे नहीं जीना मुझे
ज़हर दे दो 
मैंने हँस के कहा 
खुद को निचोड़ लो 

वाह वाह वाह !!
अति सुन्दर , आपको बधाई !

Comment by वेदिका on July 11, 2013 at 12:15am

बहुत सुंदर क्षणिकाएं रचीं!!

दिल बहलाने का सामान 
थोडा बहुत इनाम 
बस इतने के लिए क्या?
स्वाभिमान बेच दूँ//3   ,,,, ये वाली तो लाजवाब लगी मुझे !

बधाई राम भाई!  

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on July 10, 2013 at 11:24pm

क्या बात है ! वाह  !!!
बढ़िया क्षणिकाएं लिखी हैं भाई पाठक जी...
बधाइयाँ !!

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