For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब तू था तो सूनापन नही था

इच्छा थी पर अरमान नही था 

अश्कों में भिगो लिया दामन मैंने 

प्यासी रहूंगी फिर भी सोचा नही था...

तेरी यादों से दिन बनते थे 

और जुदाई से काली रातें

तेरे प्यार से ज़िन्दगी बनी थी

और बेवफाई से उखड़ी सांसे...

तेरे गम से मेरा गम जुदा कब था

तू नही समझा बस यही गम था

छीन लिया समय से पहले रब ने

जुदाई का गम क्या पहले कम था...

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 738

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2013 at 6:35pm
""तेरेगम से मेरा गम जुदाकब था

तू नही समझाबस यहीगम था

छीन लिया समयसे पहलेरब ने

जुदाई का गम क्या पहलेकम था...""आदरणीया...आरती जी, बहुत ही खूबसूरत व मर्म स्पर्शी रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाऐं
Comment by Aarti Sharma on July 1, 2013 at 3:36pm

आपका तहेदिल से शुक्रिया अमन जी

Comment by Aarti Sharma on July 1, 2013 at 3:34pm

होस्लाफ्ज़ाही के लिए कोटि कोटि धन्यवाद राजकुमार सर...

Comment by Aarti Sharma on July 1, 2013 at 3:33pm

आपका तहेदिल से शुक्रिया वेदिका जी...सुख और दुःख तो जीवन के दो पहलु है और कोई भी इनसे अछुता नही है..

Comment by aman kumar on July 1, 2013 at 3:32pm

भावनायो के लहरों मे मानव उपर नीचे होता रहेता है पर किसी को मुकम्मल जहा नही मिलता ..........

सुंदर प्रस्तुति !

Comment by वेदिका on July 1, 2013 at 3:11pm

जाने किस अपने के दुःख को उकेर के रख दिया आपने आरती जी! 

भगवान् उसे सम्बल प्रदान करे और आप जैसी दोस्त उसके पास है ये अच्छा पहलू है!! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service