For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यथा!

तुम

मन के किबाड़े

खोलना मत 

खोलना मत 

सौ तरह के 

व्यंग होगे 

धूल धूसर 

संग होंगे 

भाव कोई गैर 

अपनी 

भावना में 

घोलना मत 

घोलना मत 

व्यथा!

खुद से कहना 

खुद ही सहना 

तेरी

अंतर यातना 

पर किसी से 

बोलना मत 

बोलना मत 

व्यथा!  

गीतिका 'वेदिका'

मौलिक एवम अप्रकाशित  

Views: 1137

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on June 26, 2013 at 2:12am

आदरणीया मीना जी! आपका धन्यवाद बधाई हेतु।

आदरणीय नेमा  भैया! आपकी उपस्थिति रचना पर  हुयी।

आभार!    

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 25, 2013 at 6:16pm

खुद से कहना 

खुद ही सहना 

तेरी

अंतर यातना 

पर किसी से 

बोलना मत 

बोलना मत 

व्यथा!

या दिल की सुनो दुनिया वालों 

या मुझको अभी चुप रहने दो 

बहुत सुन्दर भाव युक्त रचना , दिल में घर कर गयी , सादर बधाई 

Comment by Meena Pathak on June 25, 2013 at 5:06pm

खुद से कहना 

खुद ही सहना 

तेरी

अंतर यातना 

पर किसी से 

बोलना मत 

बोलना मत 

व्यथा!  ..................... बहुत सुन्दर गीतिका जी .. बधाई आप को 

Comment by Ramkumar Nema on June 25, 2013 at 4:31pm

आदरणीया..गीतिका जी, ओबीओ का सक्रिय सदस्य की उपाधि मिलने पर बधाई आपकी रचना व्यथा की पंक्तियां ." खुद से कहना खुद ही सहना तेरी अंतर यातना."  अति सुंदर व दिल को छूने वाली हैं.. 

Comment by वेदिका on June 25, 2013 at 1:34am

आदरणीय अरुण जी! आपका आभार आपने रचना कर्म सराह के मुझे मनोबल प्रदान किया

Comment by वेदिका on June 25, 2013 at 1:34am

आपका आभार आदरणीय ब्रिजेश जी! आपने रचना पर अपने विचार व्यक्त करके मेरा उत्साह वर्धन किया 

  

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 10:23pm

आदरणीय वेदिका जी मन की व्यथा को सुन्दरता से व्यक्त किया है आपने मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by बृजेश नीरज on June 24, 2013 at 9:53pm

बहुत सुन्दर प्रयास आपका! मेरी बधाई स्वीकारें!

Comment by वेदिका on June 24, 2013 at 4:03pm

आप का कहना सही है आदरणीय अमन जी! वरना अंदर ही अंदर व्यथा मनोमष्तिष्क को घोंट ही देती है 

व्यथा को मन के किबाड़े खोल ही  देना चाहिए 

 

Comment by aman kumar on June 24, 2013 at 3:50pm

व्यथा!

तुम

मन के किबाड़े

खोलना मत 

खोलना मत 

कविता के खाचे मे तो अति उत्तम कविता है आपकी |

पर वास्तविकता के धरातल पर व्यथा! तो कम ही जब होती है जब खुले मे आये , 

आभार !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"नववर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं समस्त ओबीओ परिवार को। प्रयासरत हैं लेखन और सहभागिता हेतु।"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

नवगीत : सूर्य के दस्तक लगाना // सौरभ

सूर्य के दस्तक लगाना देखना सोया हुआ है व्यक्त होने की जगह क्यों शब्द लुंठित जिस समय जग अर्थ ’नव’…See More
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
Monday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
Monday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
Monday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
Sunday

© 2026   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service