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उस दिन अचानक
न मैंने कुछ सोचा था ,
न वक्त ने कुछ तय किया था .

आकाश भी नीला था
उसने भी तो कुछ सोचा नहीं था -
फिर राह में आ गया बादल
हम आपस में टकरा गये
न उसने कुछ कहा
न मैंने कुछ कहा .
हवा धीरे धीरे बह रही थी ,
मुझे देख ठिठक गयी ,
पर, मैं अभिमानिनी ,
जैसे कुछ सुनने की अपेक्षा ही नहीं .
कुछ दूर चल कर बादल रूका ,
वह चाहता था मुझसे कुछ सुनना ,
पर , मैंने कुछ न कहा.
एक अंतराल बाद
जिसमें समय की सीमा निर्धारित न थी,
बादल आया नहीं -
मैं रोज खेतों की मेढ़ पर खड़ी राह देखती रही ,
नदी नाले सूख गये ,
ज़मीन फट गयी
सारी बस्ती उजड़ गयी .
परिंदों ने भी जाते – जाते मुझसे कहा –
‘’चलें.. ‘’
मैं नहीं गयी .
मुझे बादल के आने की प्रतीक्षा थी ,
आज न हो ,कल तो आएगा .
साल दर साल गुज़र गये
मैं जड़ हो गयी . ......और ,
एक दिन अचानक ,
बादल आया पानी की बारात लेकर .
सूखी नदी उमड़ आयी
नयी कोपलें ज़मीन से उभरी
चिड़ियाँ भी लौटीं
डालों पर घोंसले बनायीं
नित्य नये संसार बसने लगे .
मेरे पैरों तले की ज़मीन भी गीली हुई,
मेरी अंतरात्मा तर हो गयी .

मेरे सोये सपने जाग उठे
मैंने पलकें झपकाईं
मोगरे के फूल झरने लगे
जिंदगी नयी खुशियाँ लेकर ,
पुनः मेरे आँगन में उतरी .
......फिर एक दिन अचानक
कुछ पंछी आये और बोले –
‘’ चलो ! नयी बस्ती की खोज में ‘’
‘’ क्यों ?’’
‘’ क्योंकि यह जीवन का दस्तूर है . ‘’
मेरा नव जागरण हो चुका था ,
मैं जीवन का मर्म समझ चुकी थी .
कुछ और साल बीते .....
एक दिन अचानक
घनघोर घटाएँ
मेरे आँगन में उमड़ी
इस बार बिजली भी आयी सौत बनकर ,
बादल गरजा दामिनी दमकी ,
पर मैं अविचलित रही ,
मैं चैतन्य थी , जागरूक थी .
साल बीतते गये ,
मेरे और बादलों के बीच एक
सामंजस्य बैठ गया .
मैं जंगल बनाती गयी ,
वह पानी बरसाता गया.
पशु कभी भूख से मरे नहीं
पंछी वन छोड़ उड़े नहीं.
हम आपस में बात करते रहे
वह मेरा मार्गदर्शन करता रहा .
मैं एक-एक बूँद से जलाशय बनाती गयी .
लोगों ने कहा – ‘’ इतना पानी क्या होगा ?
धरती डूब जायगी .’’
‘’ डूबने दो ‘’
‘’ सूखे से डूबना बेहतर है .
उसी में नवजीवन है. ‘’
धरा ने हरा आंचल मुँह में दबाकर
धीरे से करवट बदल ली.

 

 
( मौलिक एवं अप्रकाशित रचना )

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Comment by coontee mukerji on May 31, 2013 at 6:06pm

स्याम जी , नुतन जी  और भैया राम जी , आप लोगों को बहुत बहुत धन्यवाद.

Comment by Shyam Narain Verma on May 31, 2013 at 6:00pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on May 31, 2013 at 5:34pm

बहुत सुन्दर भाव .... उम्दा ... कुंती जी सादर 

Comment by ram shiromani pathak on May 31, 2013 at 4:58pm

वाह आदरणीया बहुत ही सुन्दर भाव ///हार्दिक बधाई स्वीकारें  

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