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फिर तुम्हारी याद में 
इक पीर की माला बनायी ...

रूठना फिर मनाना
इक रीत है
हाँ हमारे बीच
अपनी प्रीत है
इसी पूजा में रहे
हम मग्न
तो आवाज आयी
फिर तुम्हारी याद में ...

एक अद्भुत
अलौकिक संगीत है
हाँ तुम्हारी याद
मेरी मीत है
ध्यान जो तेरा धरूँ
तो आँसुओं ने
झिर लगायी
फिर तुम्हारी याद में ....

                  योगेश्वर 'राग'

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Comment

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Comment by योगेश्वर 'राग' on April 25, 2013 at 6:29pm

मैंने अभी तक कुछ तिस के लगभग ही कवितायेँ लिखी है। इसलिए ज्यादा अनुभव नही है। मै केवल विचार काव्यरूप में कहता हूँ । आपका, यहा obo परिवार कि छाया मिलेगी   तो मै लिखने लगूंगा ब्रिजेश जी
सादर अभिवादन समेत  

Comment by योगेश्वर 'राग' on April 25, 2013 at 12:48am

आदरणीय ब्रिजेश जि
मै जिसके विरह में हूँ वह मेरी पूजा है जैसे मीरा  की पूजा कृष्ण के बिना कृष्ण के प्रति।

जब किसी की याद में हूँ मै तो मुझे उसकी आवाज़ जो आभास के रूप में आई

जब मै उसको इतना याद कर रहा हूँ के उसके बिना पीर नही बल्कि पीडाओ की माला बन गयी है और उसकी कही हुयी बाते मेरे जेहन में संगीत की तरह उमड़ रही है फिर उसके विरह राग में जो आंसू की झिर बही उन मोतियों को फिर से पिरो कर मैंने फिर से वाही पीर की माला बनाई और जीवन इसी विरह के संगीत में निरंतर चल रहा है

मार्ग दर्शन बनाये रखे आदरणीय ब्रिजेश जी, आ०  श्याम नरेन् जी 

Comment by बृजेश नीरज on April 24, 2013 at 10:40pm

फिर तुम्हारी याद में  
इक पीर की माला बनायी ...

रूठना फिर मनाना 
इक रीत है 
हाँ हमारे बीच 
अपनी प्रीत है 
इसी पूजा में रहे            किस पूजा में?

हम मग्न 
तो आवाज आयी    ये अचानक आवाज कहां से आ गयी?

फिर तुम्हारी याद में ...

एक अद्भुत 
अलौकिक संगीत है      संगीत किस में सुनाई दे रहा है?                    हाँ तुम्हारी याद 
मेरी मीत है 
ध्यान जो तेरा धरूँ 
तो आँसुओं ने 
झिर लगायी 
फिर तुम्हारी याद में ....

सबकुछ गडमड है। संकेतों का तारतम्य एक दूसरे से नहीं बैठ रहा है। पीर की बात से कविता शुरू हुई फिर कहीं भटक गयी।

विरह वेदनादायी होता है इतना कि सारा क्रम बिखर जाता है लेकिन कविता को न बिखरने दें। सहेज, समेट कर रखें।

सादर!

Comment by Shyam Narain Verma on April 24, 2013 at 12:34pm

BAHOT KHOOB.................

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