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कितनी निराशा ,कितनी असफलता, 
कितना अँधेरा छुपाये बैठी हूँ।
कितनी ख़ुशी,कितनी आशा ,
कितनी हँसी छुपाये बैठी हूँ।
कितना ग़म,कितना दुःख,
कितना दर्द छुपाये बैठी हूँ।
कितने इरादे,कितना जोश,
कितना जूनून छुपाये बैठी हूँ।
कितनी गहराई,कितनी शिद्दत,
कितना द्वन्द छुपाये बैठी हूँ।
कितनी खूबसूरती,कितना आकर्षण,
कितनी दिलकशी छुपाये बैठी हूँ।
कितनी हिम्मत,कितनी ताकत,
कितना साहस छुपाये बैठी हूँ।
कितनी हीनता,कितनी दीनता,
कितनी निर्बलता छुपाये बैठी हूँ।
कितना प्यार,कितनी भावना,
कितनी चाहत छुपाये बैठी हूँ।
कितनी दृढ़ता,कितनी उग्रता,
कितना विरोध छुपाये बैठी हूँ।
कितने सपने, कितने ख्याल,
कितने अरमान छुपाये बैठी हूँ।
कितना यादें,कितने अनुभव,
कितने अहसास छुपाये बैठी हूँ।
कितना उत्साह, कितनी उमंग,
कितना उल्लास छुपाये बैठी हूँ।
कितनी गलती,कितनी हार,
 कितना पछतावा छुपाये बैठी हूँ।
कितनी जीत ,कितना सुकून,
कितनी संतुष्टि छुपाये बैठी हूँ।
कितनी सच्चाई,कितने प्रयास,
कितनी लगन छुपाये बैठी हूँ।
कितनी इच्छाएं,कितनी आकांक्षाएँ ,
कितनी महत्वाकांक्षाएं छुपाये बैठी हूँ।
कितने तर्क, कितने सवाल,
कितने विचार छुपाये बैठी हूँ।
कितनी आग,कितना सैलाब,
कितना तूफ़ान छुपाये बैठी हूँ।
कितनी बेचैनी,कितनी उत्कंठा,
कितनी बेक़रारी छुपाये बैठी हूँ।
कितना झूठ,कितनी ईर्ष्या,
कितना अहंकार छुपाये बैठी हूँ।
कितनी चंचलता,कितनी मासूमियत,
कितना भोलापन छुपाये बैठी हूँ मैं।
'मोनिका दुबे'
[मौलिक व् अप्रकाशित]

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2013 at 12:46pm
एक इंसान के मन की कोई थाह नहीं होती कितना कुछ समाये होता है अपने में इस प्रस्तुति पर बहुत- बहुत बधाई मोनिका  जी 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 1:15pm

इस भाव दशा को सुगढ़ शिल्प तो दिया होता. वैसे प्रविष्टि की संप्रेषणीयता सुन्दर है.

हार्दिक शुभकामनाएँ.

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