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ना उनके हो सके हम वो मेरे हो न पाये(गज़ल)

जिस ख्वाब की बदौलत ताउम्र सो न पाये

ना उनके हो सके हम वो मेरे हो न पाये

 

बादल ने पलकें भींची मौसम के आंसू छलके

पर सुर्ख दग्ध धरती के दाग धो न पाये

 

पैग़ाम दे गया वो सरहद पे मरते- मरते

कुर्बानियो पे मेरी आँखें भिगो न पाये

 

चाहा भले सभी ने बरबाद मुझको करना

सरसब्ज़  हसरतों की कश्ती डुबो न पाये

 

कुदरत को जालिमो ने इस तरह से सताया

ना हँस  सके परिन्दे अब्रपार रो न पाये

 

 

मायूस तू न होना किस्मत पे रख भरोसा

इक रोज़ पा सकेगा इस बार जो न पाये

 

तू मुझको जिंदगी दे या फिर मुझे कज़ा दे

परवर दिगार मेरा ईमान खो न पाये

********************************

'राज'

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 1, 2013 at 9:27pm

ब्रजेश कुमार जी आपकी सराहना से लेखन को नव ऊर्जा प्राप्त हुई तहे दिल से आभारी हूँ |

Comment by बृजेश नीरज on April 1, 2013 at 8:32pm

तू मुझको जिंदगी दे या फिर मुझे कज़ा दे

परवर दिगार मेरा ईमान खो न पाये

बहुत सुन्दर लिखा है आपने। आपका लेखन वैसे भी हम जैसे लिखने का प्रयास करने वालों के मार्गदर्शक रहा है। आखिर में जो संदेश आपने दिया है वह बेमिसाल है। मेरी बधाई स्वीकारें इस सुून्दर रचना पर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 5:13pm

आदरणीय विजय निकोर जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी लेखनी का मान बढ़ा दिली शुक्रिया

Comment by vijay nikore on March 31, 2013 at 5:06pm

आदरणीया ’राज’ जी:

 

गज़ल अच्छी लगी...  भाव सुन्दर हैं।

 

तू मुझको ज़िन्दगी दे या फिर मुझे कज़ा दे

परवर दिगार इमान मेरा खो न पाए  ................   वाह, वाह!

 

सादर,

विजय निकोर

 


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Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 3:21pm

केवल प्रसाद जी आपको भी पर्वों की शुभ कामनाए आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 31, 2013 at 3:16pm

आदरणीया, राजेश कुमारी जी, सबसे पहले आपको सपरिवार प्रेम एवं सद्भावना का प्रतीक होली के पावन त्योहार पर हार्दिक शुभकामनाएं।  बहुत ही उम्दा गजल।  हर पंकित में इक प्रश्न है जो सांसारिक सत्य है।  बधाई स्वीकार करें, सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 1:07pm

 राजीव कुमार झा जी आपको गज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया|


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Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 1:06pm

राम शिरोमणि पाठक जी दिली आभार आपका|

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on March 31, 2013 at 12:31pm

बहुत उम्दा गजल, आदरणीया राजेश कुमारी जी .

पैग़ाम दे गया वो सरहद पे मरते- मरते

कुर्बानियो पे मेरी आँखें भिगो न पाये

बहुत सुन्दर  .

Comment by ram shiromani pathak on March 31, 2013 at 11:50am

बादल ने पलकें भींची मौसम के आंसू छलके

पर सुर्ख दग्ध धरती के दाग धो न पाये

 

आदरणीया , उम्दा ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई के साथ साथ ढेरों दाद कुबूल फरमाएं. 

कृपया ध्यान दे...

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