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ग़ज़ल - एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है

एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है --

जाने कैसी मारा मारी रहती है --

 

एक ही दफ़्तर हैं, दोनों की शिफ्ट अलग
सूरज ढलते चाँद की बारी रहती है --

 

भाग नहीं सकते हम यूँ आसानी से
घर के बड़ों पर ज़िम्मेदारी रहती है --

 

इक ख्वाहिश की ख़ातिर ख़ुद को बेचा था
अब भी शर्मिन्दा ख़ुद्दारी रहती है --

 

साहब जी नारीवादी तो हैं, लेकिन
साहब के घर अबला नारी रहती है --

हम भी गुजरे थे इक दौरे लज़्जत से
'इश्क़' नाम की जब बीमारी रहती है --

 

उस पगली का तकिया भी भीगा होगा
अपनी तबियत भी कुछ भारी रहती है --

चादर ताने सोती है सारी दुनिया
मालिक ! तेरी पहरेदारी रहती है -- --

साहब जी नारीवादी तो हैं, लेकिन

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Comment by वीनस केसरी on March 15, 2013 at 11:51pm

एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है --

जाने कैसी मारा मारी रहती है --

वाह वा
मतले ने तो लूट ही लिया भाई आगे भी अशआर एक से बढ़ कर एक मिले

लगातार लिखा करें .....
आमीन


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 15, 2013 at 10:28pm

//उस पगली का तकिया भी भीगा होगा
अपनी तबियत भी कुछ भारी रहती है //

वोय होय होय ...बहुत खूब बबुआ ...विस्तार में थोड़ी देर बाद :-)

कृपया ध्यान दे...

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