For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता कराह रही है

गली के नुक्कड़ पर पड़ी हुई

 

तेज रफ्तार जिंदगी

रौंदकर चली गयी उसे

 

स्वार्थ और वासना के वस्त्रों पर

प्रेम की ओढ़नी ओढ़े

समाज तमाशबीन खड़ा है

 

कोई पुरसाहाल नहीं

 

मुक्तिबोध कहीं धूल फांक रहे

त्रिलोचन रहे नहीं

निराला का तो कंकाल भी नहीं बचा

 

कौन दे सहारा उसे

 

बैसाखियों पर कविता चलती नहीं

 

तो क्या दम तोड़ देगी

वहीं पड़े-पड़े?

                    - बृजेश नीरज

Views: 565

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 9:30pm

आदरणीया वेदिका जी,
आपने मेरे दिल की बात कह दी। इतना ही नहीं अन्य साइट पर ऐसे लोग बहुत सम्मानित साहित्यकार माने जा रहे हैं और देखकर ऐसा लगता है कि अब साहित्य का सारा भविष्य उन्हें के भरोसे है।
ओ बी ओ में आकर राहत महसूस होती है।
यहां कूड़ा करकट पर जिस तरह नियंत्रण है वह सराहनीय है।
लिखते समय कुछ सार्थक ही लिखा जाए यही उचित भी है और रचनाकार के लिए सफलता का मार्ग भी।
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 9:25pm

आदरणीय स्वर्ण जी,
आपका आभार!
वैसे मैं तो साहित्य के महासंसार में अभी तिनका भी नहीं हूं। ये हम सब का दायित्व है कि कविता की इस कराह को समाप्त किया जाए। ओ बी ओ का इस क्षेत्र में जो प्रयास चल रहा है वह सराहनीय है।
सादर!

Comment by वेदिका on March 13, 2013 at 9:08pm

बहुत अच्छी वेदना उकेरी आदरणीय बृजेश कुमार नीरज जी! धन्यवाद।

मुक्तिबोध कहीं धूल फांक रहे

त्रिलोचन रहे नहीं

निराला का तो कंकाल भी नहीं बचा

अगर दूसरी सोशल साईट के सन्दर्भ में देखा जाये तो तथाकथित कवि, कविता के नाम पर न जाने क्या क्या परोस कर वाह वाही भी जुटा  लेते  है न जाने कैसे जबकि उनकी रचनाएँ देख कर वाकई में रचना कराह उठें।

आशा है दम तोड़ने के पहले

गली के नुक्कड़ पर पड़ी हुई

सच्चे रचनाकारों से उसे नवजीवन मिले। शुभकामनायें

सादर वेदिका 

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 13, 2013 at 8:44pm

शायद नहीं  बृजेश नीरज के होते 

Comment by बृजेश नीरज on March 1, 2013 at 6:11pm

आदरणीय अजय जी, लक्ष्मण जी, राजेन्द्र जी तथा आदरणीया  मीना जी उत्साहवर्धन के लिए आप सबका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 1, 2013 at 6:04pm

आदरणीया प्राची जी 

आपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 1, 2013 at 4:57pm

काव्य विधाओं की गुणवत्ता के गिरते जाने पर अच्छी वेदना व्यक्त की है आदरणीय

तेज रफ़्तार ज़िंदगी.

रौंद कर चली गयी उसे,

काव्य रचना के लिए जितना वक़्त और परिश्रम चाहिए वो आज की तेज रफ़्तार ज़िंदगी में कहाँ,

प्रेम की ओढ़नी ओढे 

समाज तमाशबीन खड़ा है,

यही जागरूकता तो चाहिए, कि काव्य और साहित्य के होते ह्रास को देखकर भी अनदेखा नहीं करना है..

न ही अपने स्वार्थ और वाहवाही की वासना में ग्रस्त होना है....

बैसाखियों कर कविता नहीं चलती..... बिलकुल ठीक कहा, आज काव्य को बैसाखियों से उठा सुदृढ़ आधार पर खडा करना है 

इस साहित्य के हित में चिंतन करती अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद आदरणीय बृजेश कुमार जी 

Comment by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on March 1, 2013 at 2:18pm

सुन्दर अभिव्यक्ति 

Comment by Meena Pathak on March 1, 2013 at 1:51pm

बधाई इस सुन्दर कविता के लिए 

Comment by Dr.Ajay Khare on March 1, 2013 at 11:04am

bhavnao ka khatm hota mahatv badhai sunder rachna ke liye

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
12 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service