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जीवन-मृत्यु
----------------
एक अदृश्य सी रेखा
जीवन मृत्यु के मध्य
चुनना अत्यंत कठिन
दोनों में से एक को
जीवन क्षणभंगुर
अकाट्य सत्य है
मृत्यु भी असत्य नहीं
जान लें इस भेद को
मृत्यु की छाती पर
नर्तन करता जीवन
पकड़ना चाँद लहरों में
बाँधना रेत का कठिन
चेत रे मन होश न खोना
जीवन है अमूल्य खरा सोना
सुन्दर जीवन जिया जाये
होय वही जो पिया मन भाये

  • प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा / २०-१-२०१३

Views: 517

Comment

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Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on January 22, 2013 at 9:36pm

जीवन - मृत्यु के बीच की दूरी - रेखा को देखने में लगी एक सफल रचना.....

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 22, 2013 at 4:08pm

शास्वत सत्य पर सुन्दर कविता में माध्यम से अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई श्री प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 22, 2013 at 3:02pm

आदरणीया प्राची जी 

सादर 

आपने सही कहा 

अंत गड़बड़ा गया 

मृत्यु पर बस नहीं 

जीवन है हाथ 

हर पल को जिए 

हर्षोल्लास 

जैसे ही भाव देने थे .

आप कुछ पूरा करना चाहें अंत को ,

मैं स्वीकार कर समावेश कर लूँगा. 

आभार प्रोत्साहन हेतु. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 22, 2013 at 2:58pm

आदरणीय 

राम जी 

सादर आभार 

Comment by ram shiromani pathak on January 21, 2013 at 7:53pm

सुन्दर रचना आदरणीय प्रदीप जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 21, 2013 at 5:59pm

सुन्दर रचना आदरणीय प्रदीप जी 

सनातनी शाश्वत सत्य विचार धारा को लेकर रचना की शुरुवात, मध्य मन मोह लेने वाला 

मृत्यु की छाती पर 
नर्तन करता जीवन....वाह, बहुत सुन्दर शब्द चित्र

पर अंत कुछ डगमगाया सा लगता है,

पर अभिव्यक्ति पसंद आयी, इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकारें , सादर.

कृपया ध्यान दे...

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