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कही तुम (श्री बालश्वरुप राही)

कवि - श्री बालश्वरुप राही

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Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 6:42am

एडमिन साहब, बहुत ही सुन्दर गीत आपने उपलब्ध कराया है इस मंच पर। आपका हार्दिक आभार!

Comment by Saurabh Srivastava on August 6, 2013 at 10:31pm

वाह! शानदार प्रेमगीत है! हिंदी की १०१ सर्वश्रेष्ठ प्रेम-कविताएँ साईट पर भी इसको पढ़ा था.. बधाई!

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 9:59pm

कटीले शूल भी दुलरा रहे है मेरे पांवो को 

कहीं तुम पन्थ पर पलकें बिछाए तो नही बैठी 

गजब की विचार शक्ति समाहित रचना, रचयिता आदरणीय कवि श्रेष्ठ श्री बाल स्वरूप रही जी!

आभार आदरणीय एडमिन जी!   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 6, 2010 at 5:16pm
इस सुन्दर प्रेम गीत की हर पंक्तियाँ मन में ऊर्जा का संचरण करने के लिए पर्याप्त है|

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