For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 
जहाँ पूजित है नारी वहां फिर क्यों शर्मसार हुई है,
स्वच्छंद विचरण का क्या उसको अधिकार नहीं है ।
जहाँ वोटों के राजनीति, गुण्डों की तूती बजती है,
पंगु है क़ानून व्यवस्था, जो हमको बेहद खलती है  ।
   
शर्म से झुक गयी आँखे मानवता का ढोंग पीटते,
मजबूर हुई क्यों नारी,जिन्दा रहने का प्रश्न करते ।
लीक पीटते संसद में भी, इस पर जो शोर मचाते,
फांसी दो व्यभिचारो को,अब और विलम्ब न चाहते।
 
-लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला 

Views: 384

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 25, 2012 at 8:08pm

रचना पसंद कर होसला अफजाई हेतु हार्दिक आभार भाई श्री अशोक रक्तले जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 25, 2012 at 7:37pm

सभी मन आंदोलित है सभी आक्रोशित है सब चाहते हैं ये सूरत बदले. बहुत सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय लड़ीवाला साहब जी.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 21, 2012 at 8:05pm
हार्दिक आभार आदरणीया सीमा अग्रवाल जी- 

वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकली होगी तान 

निकल कर आँखों से चुपचाप,होगी कविता प्रथम अनजान 
Comment by seema agrawal on December 21, 2012 at 7:19pm

अंतर्मन को झिंझोड़ती घटना के आक्रोश से उपजी  आपकी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 21, 2012 at 11:43am

रचना में निहित बात का समर्थन करने के लिए आभार श्री अरुण शर्मा अनंत जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 21, 2012 at 11:28am
खेल नहीं या विधना का नारी, यह खलनायक की चाल है,
गुरुकुल सा सिक्षण हो सबको, अब इसकी ही दरकार है ।
कर्तव्य समझा और निभाया, सबको इसका गर भान  है,
जीवन को समझ इंसा बने, बस अब इसकी ही दरकार है ।
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 21, 2012 at 11:26am

आदरणीय सर अखंड सत्य बयां किया है आपने, जब तक कोई कठोर कानून पारित नहीं होगा ये सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा, परन्तु अब बस बहुत होगा इस तरह का यह अपमान और कब तक.

Comment by SUMAN MISHRA on December 21, 2012 at 12:57am

खलने से क्या होगा, ये जीवन चलता ऐसे ही,

ये विधना का ही खेल है जो नारी ने इतना भार सहा

ना शक्ति माप, कर्तव्य आंक,बस नारी नारी येही कहो
हमने जीवन को समझा कब जब इंसा इंसा बन ना सका

(यछ प्रश्न है आपकी कविता प्रसाद सर,,,)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
15 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service