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ग़ज़ल - इतनी शिकायत बाप रे

एक और शुरुआती दौर की ग़ज़ल......
कच्चे अधपके ख्यालात.......
एक दो शेअर शायद आपने सुना हो, पूरी ग़ज़ल पहली बार मंज़रे आम पर आ रही है
बर्दाश्त करें ....


इतनी शिकायत बाप रे  |
जीने की आफत बाप रे  |

हम भी मरें तुम भी मरो,
ऐसी मुहब्बत बाप रे |

जो खौफ बाँटें उनके भी,
लब पर तिलावत बाप रे |
तिलावत - कुरआन पाठ


नेता दरोगा और क्लर्क,
इनकी शराफत बाप रे |

शब भर करें हैं जुल्म और,
दिन भर इबादत बाप रे |

ऐसी पडी है देश को,
लुटने की आदत बाप रे |

कुछ शर्म कर अह्.ले  सुखन,
पल पल सियासत बाप रे | 

घायल पड़ा है जब वतन,
फिर भी शराफत बाप रे |

२४/०४/२०१०

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Comment

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Comment by seema agrawal on December 12, 2012 at 1:03pm

हम भी मरें तुम भी मरो,
ऐसी मुहब्बत बाप रे |.........बिलकुल ऐसी बाप रे इस उम्र में ही होती है 

शब भर करें हैं जुल्म और,
दिन भर इबादत बाप रे |.....,सच कह दिया रे कह दिया

..........................................इतनी हिमाकत बाप रे.........ये बचपन था या बचपना वीनस जी 

कुछ शर्म कर अह्.ले  सुखन, 
पल पल सियासत बाप रे |...........वाह सही कहा है 

शुरुआती दौर की कच्चे अधपके ख्यालात  की कुछ और गज़लें हो जाएँ 

 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 12, 2012 at 11:47am

वीनस भाई बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। छोटे बहर में अच्छे शेर निकाले हैं। पूरी ग़ज़ल पर ये एक शेर भारी है॥शेर की हर क्वालिटी पे खरा....बार बार वाह वाह करने को मन कर रहा है॥

शब भर करें हैं जुल्म और,
दिन भर इबादत बाप रे |

शब भर करें हैं जुल्म और,
दिन भर इबादत बाप रे |

शब भर करें हैं जुल्म और,
दिन भर इबादत बाप रे |।

।।।।॥

॥।।।।

शब भर करें हैं जुल्म और,
दिन भर इबादत बाप रे |....

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 12, 2012 at 11:37am

पूरी ग़ज़ल पहली बार मंज़रे आम पर आ रही है 
बर्दाश्त करें ....  ऐसी गुजारिश बाप रे! हाहाहा 

हम भी मरें तुम भी मरो,
ऐसी मुहब्बत बाप रे |..............वाह, दुविधा को किस आसानी से शब्द दिए हैं 

जो खौफ बाँटें उनके भी, 
लब पर तिलावत बाप रे |.............क्या कहने 

सुन्दर ग़ज़ल के हार्दिक दाद क़ुबूल करें 

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 12, 2012 at 11:07am

वीनस भाई सारे के सारे अशआर माशाल्लाह लाजवाब हैं दिली और ढेरों दाद कुबूल कीजिये.

Comment by नादिर ख़ान on December 12, 2012 at 10:39am

जो खौफ बाँटें उनके भी, 
लब पर तिलावत बाप रे |

शब भर करें हैं जुल्म और,
दिन भर इबादत बाप रे | 

ऐसी पडी है देश को, 
लुटने की आदत बाप रे |

क्या कहने वीनस जी पूरी गज़ल लाजवाब है ।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 12, 2012 at 10:31am

घायल पड़ा है जब वतन, 
फिर भी शराफत बाप रे |

पड़ने लगा है जाडा 

घुमते नंगे बदन बाप रे 

सारे शेर शानदार, 

बधाई भी जानदार बाप रे 

सादर , आदरणीय वीनस जी,

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