For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

न सूरज पश्चिम से ऊगे , न पूरव में होगा ढलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

तुम फेसबुक की टाइम लाइन
मैं ऑरकुट बहुत पुराना हूँ
तुम काजू किशमिश के जैसे
मैं तो बस चना का दाना हूँ
तुम अमरीका के डालर सी
मैं भारत का इक आना हूँ
तुम बहर वजन ले मस्त ग़ज़ल
मैं एक बेतुका गाना हूँ

मैं नागफनी की डाली हूँ मुश्किल है फूलों का खिलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

तुम शुष्मा के जैसी वाचाल
मैं गुमसुम सा मनमोहन हूँ
तुम हो हीरे की चमक लिए
मैं बस कोयले का दोहन हूँ
तुम महंगी काजू कतली सी
मैं मुफ्त पापड़ी सोहन हूँ
तुम मंझी हुई तेंदुलकर हो
मैं नया नवेला रोहन हूँ

तुम होलिवुड की नयी फिल्म मैं हिंदी का नाटक अदना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

तुम डबल साउंड वाली रोकेट
मैं बिन आवाज का पिद्दी बम
तुम रेशम सी जुल्फों वाली
मैं कंघी में चिपका सा ख़म
तुम सेम्पेन की बोतल हो
मैं ठर्रे के पौये में रम
तुम तरुणाई डर्टी पिक्चर
मैं बुझा हुआ सा चीनी कम

तुम स्वर्ण जड़ी इक झुलनी हो, मैं लकड़ी का टूटा झुलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

तुम बिजली सी चंचल नागिन
मैं सुस्त पड़ा इक अजगर हूँ
तुम माइक्रोसोफ्ट के ऑफिस सी
मैं इक सरकारी दफ्तर हूँ
तुम चटक चांदनी मालों की
मैं भूला सा चिड़ियाघर हूँ
तुम भरी हुई छत की टंकी
मैं सूखी खाली गागर हूँ

यूँ उथल पुथल से सागर की है मुमकिन क्या चन्दा हिलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

तुम होर्लिक्स वूमन वाला
मैं रामदेव की ठंडाई
तुम भीड़ ग्वालियर मेले की
मैं भुज में पसरी तन्हाई
तुम नींद बिना चिंता वाली
मैं उस्नींदी सी अंगडाई
तुम बहुमत ले आई सत्ता
मैं भोली जनता पछताई

क्या किसी कोण से है संभव यूँ तेरी और मेरी तुलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

संदीप पटेल "दीप'

Views: 1276

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 15, 2012 at 11:35pm

वाह बहुत खूब, क्या करीने से तुलना किया है, बहुत ही रोचक रचना, कुछ दिन पहले मैं कुछ इसी तरह की एक रचना किसी साईट पर पढ़ी थी ....दो चार पक्तियां देखें ..........
तुम सत्ता की महरानी हो, मैं विपक्ष की लाचारी हूँ ।
तुम हो ममता-जयललिता सी, मैं क्वारा अटल-बिहारी हूँ ।
तुम तेन्दुलकर का शतक प्रिये, मैं फ़ॉलो-ऑन की पारी हूँ ।
तुम गेट्ज़, मटीज़, कोरोला हो, मैं लेलैन्ड की लॉरी हूँ ।
मुझको रेफ़री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये ।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।

इस खुबसूरत प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें संदीप जी |

Comment by Yogi Saraswat on September 14, 2012 at 9:52am

तुम फेसबुक की टाइम लाइन
मैं ऑरकुट बहुत पुराना हूँ
तुम काजू किशमिश के जैसे
मैं तो बस चना का दाना हूँ
तुम अमरीका के डालर सी
मैं भारत का इक आना हूँ
तुम बहर वजन ले मस्त ग़ज़ल
मैं एक बेतुका गाना हूँ

मित्रवर संदीप कुमार पटेल जी , गज़ब likha hai bhai , dil khush kar diya ! bhaiya जी , manmohan mat bano , bura haal hua pada hai ! man karta hai teen baar gaun ! ahaha
maza aa gaya

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 9:13am

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम
आपको रचना ने हंसाया और गुदगुदाया मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया
मंच पर तो पता नहीं लेकिन यहाँ अवश्य में तारीफ पा कर मंत्रमुग्ध हुआ जा रहा हूँ
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 9:11am

आदरणीया राजेश कुमारी जी
एक पार पुनः आपका बहुत बहुत धनयवाद और सादर आभार
स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 9:10am

आदरणीया सीमा जी सादर नमन
आपको लेखन पसंद और साभार आपने आदरणीय  जोगी जी की कविता भी प्रस्तुत की
आपका बहुत बहुत आभार
मुझे कुछ लिखते लिखते याद आया 

'इस तरह अगर हम छुप छुप के आपस में मेल बढ़ाएंगे
तो एक रोज तेरे डैडी अमरीशपुरी बन जायेंगे
सब हड्डी पसली तुड़वाकर भिजवा देंगे वो जेल प्रिये
अपना न होगा मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

बस फिर क्या था मैंने सोचा
क्यूँ न कुछ नयापन दिया जाए इस रचना को
और लिख डाला और आप सभी का स्नेह भी प्राप्त हुआ
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 9:05am

आदरणीया डॉ. प्राची जी सादर प्रणाम
आपको रचना पसंद आई मेरे शब्दों ने आपके मन को गुदगुदाया
मेरे लेखन सार्थक हो गया
आपका बहुत बहुत आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 9:02am

आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर नमन
आपकी सराहना मिली लेखन को बल मिला
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 9:01am

आदरणीय अजीतेंदु जी सादर
आपने कवि की भावना नहीं समझी
वो अपने आप को कोस नहीं रहा अपितु ये बता रहा है की
हमारा मिलना संभव नहीं है
आपने देखा नहीं वो इतना विस्तार से अंतर इसीलिए बता रहा है
क्यूंकि प्रेमिका मान नहीं रही है के हमारा मिलना संभव नहीं है
और प्रेमी दूर भाग रहा है ...................हा हा हा हा
शुक्रिया आपका सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 13, 2012 at 6:40pm

वाह वाह भाई संदीप कुमार पटेल जी, राम राम जी 

आप तो जयपुर के महामूर्ख सम्मलेन में सिरकत कर ताज पहनने की तयारी करे मान्यवर |  
हंसी से सरोबार ऐसी रचना से लोग ही नही कविगण भी दाद देते हँसते हँसते लोट पोत हो जायेंगे |
बहरहाल हार्दिक बधाई भाई |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2012 at 5:48pm

सीमा जी सुनील जोगी जी की कविता पढवाने के लिए हार्दिक आभार हंसी ही नहीं रुक रही प्रिय संदीप ने भी नहले पे दहला मारा है ....वाह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service