For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक दिन बिजली के जाने पर
ढूंढ रहा था
प्रकाश का साधन
करने को
तमस निस्तारण
तभी हाथों से
कोई चीज टकराई
देखा
पुराना दीया
जिस पर हरा काला
मैल बैठा हुआ
झंकृत कर गया मुझे
याद मेरे बचपन का
इसी दीये तले
पाया ज्ञान का प्रकाश
मैं क्या
मुझसे भी पहले
औरों ने भी इसी दीये
के आँचल तले
आँखों को काले धुँए में
झोंकते हुए
पाया अपने लक्ष्य को
वही दीया न जाने
देता रहा प्रकाश
कितनों को
दूसरों के लिए जलाता रहा
खुद को सहकर
आंधी तूफानों को
क्या इसका महत्व
कम हो पायेगा
ना जाने कितनी यादें अभी
इससे जुडी हैं
ना जाने कितनी हैं बाकी
दीया !
अनमोल पुरातन
जैसे मेरी बूढी दादी !!

Views: 452

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shashi Ranjan Mishra on October 14, 2010 at 5:26pm
सभी को बहुत बहुत धन्यवाद ... इस नाचीज कि हौसला आफजाई के लिए
Comment by Satyendra Kumar Upadhyay on October 14, 2010 at 3:51pm
खूबसूरत कविता
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 8, 2010 at 5:08pm
shashi bhaiya namaskaar...
yahan ye aapki pehli rachna hai aur pehli rachna hi ekdam dhamakedaar hai.....
मैं क्या
मुझसे भी पहले
औरों ने भी इसी दीये
के आँचल तले
आँखों को काले धुँए में
झोंकते हुए
पाया अपने लक्ष्य को,
bahut badhiya shashi bhaiya....aisehi likhte rahe...
Comment by Mumtaz Aziz Naza on October 8, 2010 at 3:57pm
kya baat hai, bhaavnaaon se otprot
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on October 8, 2010 at 2:40pm
۞ शशि रंजन जी ۞ सुन्दर से एवं आसान शब्दों में बाँध लिया है आपने ... खूबसूरत कविता के लिए धन्यवाद ...... ۞
Comment by आशीष यादव on October 7, 2010 at 11:48pm
Kya shandar abhiwyakti hai. Purani yade kis tarah se yaad aa jati h. Aur budhi dadi, sach bahut achchha lga.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 7, 2010 at 7:58pm
मैं क्या
मुझसे भी पहले
औरों ने भी इसी दीये
के आँचल तले
आँखों को काले धुँए में
झोंकते हुए
पाया अपने लक्ष्य को,
बहुत खूब शशि भाई, लक्ष्य भेदने वाले किसी भी परिस्थितियों में लक्ष्य पा ही लेते है, और जीन मे लक्ष्य के प्रति दीवानगी नहीं है वो सारे सुख सुविधाओं के बीच भी भटक जाते है, दिया को प्रतिक बना आपने ओपन बुक्स ऑनलाइन के ओपन मंच पर काव्य सरिता बहा दिया है, बहुत ही सुंदर रचना और खुबसूरत अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकार करे श्रीमान |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
56 minutes ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service