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बस दो घूंट पियूँ , और सारा जाम भूल जाऊँ
कि तुझे याद करूँ, और तेरा नाम भूल जाऊँ


जीवन के सफ़र में कहीं, तू मिले जो दुबारा,
तेरा हाल पूछूँ, और क्या था काम भूल जाऊँ,

मिलने को तुझसे, जब भी सजाऊँ कोई रात,
मारे ख़ुशी के मैं तो वही, शाम भूल जाऊँ, 

वैसे तो दिल की याद है, हर बात मुंहजबानी,
पर लिखते वक़्त क्या था, पैगाम भूल जाऊँ,

आज चाहता हूँ कह दूँ, पर जान का है खतरा,
मैं क्या करूँ कि बाद का, अंजाम भूल जाऊँ.......

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 10:54am

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपको ये ग़ज़ल पसंद आई. मन प्रसन्न हो गया.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 10:54am

उमाशंकर जी आपका आशीर्वाद मिला आभार.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 10:53am

भ्रमर जी बहुत - २ धन्यवाद

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 10:53am

दीप्ति जी शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2012 at 9:22am

किसी की चाहत में दीवानगी से भरे अल्फ़ाज जोड़ जोड़ कर एक प्यारी सी ग़ज़ल लिख दी आपने बहुत बढ़िया अंतिम शेर तो लाजबाब है 

आज चाहता हूँ कह दूँ, पर जान का है खतरा,
मैं क्या करूँ कि बाद का, अंजाम भूल जाऊँ......इसका जबाब ग़ज़ल की पहली लाइन देगी .

 

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 11, 2012 at 11:13pm

अरुण भाई आप बहुत बढ़िया लिखते है भावों पर आपकी अभिव्यक्ति का  अंदाज बहुत बढ़िया है

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 11, 2012 at 10:13pm

जीवन के सफ़र में कहीं, तू मिले जो दुबारा,
तेरा हाल पूछूँ, और क्या था काम भूल जाऊँ,

बदले हुए सामजिक परिदृश्य को दर्शाती सुन्दर रचना अरुण अनंत जी ...कटु व्यंग्य 

भ्रमर ५ 

 

Comment by deepti sharma on July 11, 2012 at 7:11pm

वाह बधाई आपको 

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