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रात के तेवर जब - जब बदले नज़र आये,

तेरी यादों के मौसम बड़े उबले नज़र आये,

 

तसल्ली दे रहे हैं, हालात मुझे लेकिन,

आँखों से सारे मंजर दुबले नज़र आये,

 

भभकते अश्कों को कोई साथ न मिला,

न रुके और न कभी संभले नज़र आये,

 

फंस गए इस तरह बदनसीबी की जाल में,

मजबूरियों से हम न निकले नज़र आये....

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 8, 2012 at 11:33am

योगेश भाई शुक्रिया

Comment by yogesh shivhare on July 7, 2012 at 10:53pm

भभकते अश्कों को कोई साथ न मिला,

न रुके और न कभी संभले नज़र आये,

सुन्दर अभिव्यक्ति ...अरुण जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2012 at 11:29am

शुक्रिया हरीश जी

Comment by Harish Bhatt on July 7, 2012 at 11:21am

अरूण जी नमस्‍ते, शानदार कविता के लिए हार्दिक बधाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2012 at 11:03am

शुक्रिया प्रदीप भाई

Comment by Pradeep Kumar Kesarwani on July 7, 2012 at 8:36am

भभकते अश्कों को कोई साथ न मिला,

न रुके और न कभी संभले नज़र आये,

दिल को घायल करता हुआ खंज़र....बधाई हो आपको 

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 6, 2012 at 5:27pm

शुक्रिया रेखा जी

Comment by Rekha Joshi on July 6, 2012 at 5:05pm

अरुण जी,

जिंदगी के सफर में हम चल रहे थे अकेले ,
हाले दिल बयाँ किया जब तुम नजर आये | ,लिखते रहो ,बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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