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ज़िन्दगी... ... ...
देती रही तमन्नायें...
उन्हें सहेजती रही मैं...
खुद में... ... ...
इस उम्मीद से...
कि कभी... किसी रोज़...
कहीं ना कहीं...
इन्हें भी दूँगी पूर्णता...
और करूँगी...
खुद को भी पूर्ण...
जिऊँगी तृप्त हो...
इस दुनिया से...
बेखबर... ... ...

पर... ... ...
नहीं जानती थी मैं...
कि तमन्नायें होतीं हैं...
सिर्फ सहेजने के लिये...
इन समंदर का...
नहीं कोई साहिल...
इस कश्ती का...
नहीं कोई माझी...
ये तो डोलती रहतीं हैं...
अकेली... ... ...
बीच मझधार...
और खो जाती है...
इक दिन किसी...
भंवर में... ... ...
हमेशा के लिये... ... ...!!

::::जूली मुलानी::::
::::Julie Mulani::::

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Comment

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Comment by Julie on October 3, 2010 at 12:58am
विनीत जी आपने भी दुरुस्त फ़रमाया... शुक्रिया आपकी शुभकामनाओं का...!! :-)
Comment by Julie on October 3, 2010 at 12:57am
नविन भाई जरुर... आपकी ईमानदार टिप्पड़ी के लिए तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ... अगली बार और मेहनत करुँगी... जिससे भाई का पेट भर जाए...!! :-)
Comment by vineet agarwal on October 2, 2010 at 11:12pm
sach hai aur sateek bhi

tamnnaon ke behlaave mein aksar aa hi jate hain
kabhi hum chot khate hain ..kabhi hum muskuraate hain

shubhkanayen
Comment by Julie on October 2, 2010 at 3:18pm
गणेश जी इस हौंसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ आपकी...!! :-)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2010 at 2:32pm
जुली जी, एक चित्र और उसकी व्याख्या करती एक खुबसूरत कविता, क्या कहा जाय, अद्भुत संगम है, अद्भुत है आपकी सोच और अद्भुत है आपकी अभिव्यक्ति,
इन समंदर का...
नहीं कोई साहिल...
इस कश्ती का...
नहीं कोई माझी...
ये तो डोलती रहतीं हैं...
अकेली... ... ...
बीच मझधार...
और खो जाती है...
इक दिन किसी...
भंवर में... ... ...
हमेशा के लिये... ...
दिल मे गहराई तक उतर जाने वाले यह शब्द समूह, एक बारगी तो मन मस्तिष्क को झंकृत कर देते है, बधाई इस शानदार उदगार पर, जय हो !

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