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घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे (रूप घनाक्षरी)

घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे ;
कृषक भी ताक रहे कब से ही आसमान |

मेघा टर्र-टर्र कर थकने लगे हैं जैसे ;
अब सुन ले उनकी अच्छा नहीं ये गुमान |

तुझ पर ही निर्भर खेती हमारे देश की ;
बिन तेरे हो जाएगी रूखी-सूखी सुनसान |

दे देंगी तेरी फुहारें कई लोगों को जिंदगी ;
झूम के सब करेंगे खूब तेरा गुणगान ||

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 24, 2012 at 10:44am
आदरणीय भावेश जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 24, 2012 at 10:34am

तुझ पर ही निर्भर खेती हमारे देश की ;
बिन तेरे हो जाएगी रूखी-सूखी सुनसान |

बरसो  मेघ झट से मत तोड़ो करोडो के अरमान
दुआ इन्द्र देवता सुन लो हमारी भी फरियाद  

 

Comment by Bhawesh Rajpal on June 24, 2012 at 9:55am

दे देंगी तेरी फुहारें कई लोगों को जिंदगी ;
झूम के सब करेंगे खूब तेरा गुणगान ||

बहुत खुबसूरत  !

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 23, 2012 at 11:34pm
आपका हार्दिक आभार कुशवाहा सर। इस बार की नगण्य बारिश ने आम की पैदावार को काफी प्रभावित किया है।
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 23, 2012 at 9:39pm

वाह कुमार जी, सादर

दे देंगी तेरी फुहारें कई लोगों को जिंदगी ;
झूम के सब करेंगे खूब तेरा गुणगान ||

बहुत बढ़िया मांग. बधाई.

 

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